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कहतें हैं सच बोलता है आईना
अपने आपकी पहचान करवाता है

देखते हैं जो बार बार इसमें
क्या रंग बदलता है आईना !

सज संवर कर देखें गर इसमें
खूबसूरत मूर्त दिखाता है आईना

गर पहचानने के लिए देखें इसमें
अहँकारी कर पुकारता है आईना ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Mahendra Kumar on December 18, 2016 at 10:18am

बढ़िया कविता है आदरणीया कल्पना जी। आपको बहुत-बहुत बधाई। 

//अहँकारी कर// क्या यहाँ "अहंकारी बन" का प्रयोग किया जा सकता है? देख लीजिएगा। सादर।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 16, 2016 at 5:33pm
आदाब जनाब समर साहब । आपको पसन्द आई रचना सार्थक हुआ मेरा यह प्रयास । बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय ।
Comment by Samar kabeer on December 16, 2016 at 5:27pm
मोहतरमा कल्पना भट्ट साहिबा, अच्छी लगी आपकी ग़ज़ल नुमा कविता,"कहते हैं सच बोलता है आईना"आपकी ये पंक्ति पूरी तरह लय में है, इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

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