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लोकतंत्र में
लोक नहीं होता
होता है
तो सिर्फ तंत्र
जो करता है शासन
पूँजीपतियों के लिए
नेताओं के द्वारा
नौकरशाहों से मिल
मीडिया के साथ
जनता के नाम से
जनता के ऊपर
न्याय
स्वतंत्रता
समता
और व्यक्ति की
गरिमा का
चेहरा लगा कर
लोकतंत्र में
लोक नहीं होता
होता है
तो सिर्फ तंत्र!

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Mahendra Kumar on December 4, 2016 at 7:43pm
आदरणीय समर सर, सादर आदाब! रचना आपको पसन्द आयी इसके लिए हृदय से आभार।
Comment by Samar kabeer on December 4, 2016 at 2:54pm
जनाब महेन्द्र कुमार जी आदाब,उम्दा रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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