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बह्र:1222 1222 1222 1222

नफ़स मुश्किल हुआ लेना नजारे रक्स करते हैं
छुड़ा कर आज दामन को सहारे रक्स करते हैं।

यकीं जिनपर मुझे सबसे ज़ियादा था हुआ करता
गिरा कर हौंसला मेरा वो'प्यारे रक्स करते हैं।

गवाही कौन देगा अब तुम्हारी बे गुनाही की
बिका ईमां गवाहों का वे' सारे रक्स करते हैं।

भुला आवाज को दिल की तमाशा देखते हैं सब
"सफीने डूब जाते हैं किनारे रक़्स करते हैं।"

मुहब्बत कर रहे देखो पराई से सभी यारो
भुला अपनी ही'भाषा को हमारे रक्स करते हैं।

गमों में खो गया सारा उजाला था जो' जीवन में
कि छुपकर अब्र के पीछे सितारे रक्स करते हैं।

गुहर की आस कब कोई न हीरे भी हमें भाते
विरह से दिल में दहके जो अंगारे रक्स करते हैं।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 20, 2016 at 11:36am
आदरणीय सतविंदर भाई गजल मेरी समझ से बहुत दूर है, लेकिन आपकी गजल बहुत ही सुन्दर लगी।हार्दिक बधाई स्वीकार करें । सादर ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 18, 2016 at 6:55pm
आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमन।मेरा प्रयास और अभ्यास आपको पसंद आया मेरा लिखना सार्थक हुआ।आदरणीय आपने दुरुस्त फरमाया यह फव्वारे ही है।गलत टंकण हो गया है।मैं इसे दुरुस्त करता हूँ।एक बार पुनः आभार।
Comment by Samar kabeer on September 18, 2016 at 2:51pm
जनाब सतविंदर कुमार जी आदाब,इतनी मुश्किल रदीफ़ में बड़ी आसानी से आपने ग़ज़ल कह ली,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
आख़री शैर में सही शब्द है "फव्वारे"देखियेग ।

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