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विरासत - (लघुकथा)-

विरासत - (लघुकथा)-

सुजाता मैडम पिछले तीन दिन से कक्षा सात के छात्रों को विरासत के मायने समझा रहीं थीl  जो छात्र तेज और मेधावी थे, वे तो पहले रोज ही समझ गये लेकिन अधिकांश छात्र अभी भी इसका वास्तविक मतलब नहीं जान पाये थेl मैडम ने इसे सरल तरीके से समझाने के लिये छात्रों को एक  गृह कार्य दिया कि सभी छात्र अपने परिवार के बुजुर्गों से पूछ कर पिछली तीन पीढ़ियों द्वारा छोड़ी गयी चल और अचल संपत्तियों का व्यौरा लिख कर लायेंl

आज मैडम उस शीर्षक को अंतिम रूप देकर समाप्त कर देना चाह रही थींl लगभग सभी छात्र इस गृह कार्य को पूरा कर लाये थेl मैडम बहुत खुश थींl अब वह हर छात्र को उसके दिये विवरण के अनुसार समझाने  में कामयाब हो रही थींl

मगर एक छात्र काली चरण कोई विवरण नहीं लाया थाl

"क्यों काली चरण, तुम गृह कार्य नहीं किये,कोई खास वज़ह"?

काली चरण सिर झुकाये चुपचाप खड़ा थाl

"काली चरण, जवाब दो,तुम तो अच्छे छात्र हो, सदैव अपना गृह कार्य पूरा करके लाते हो"l

"जी मैडम जी, हमारे अब्बू बताये कि उनके पुरखे  कुछ नहीं छोड़ गये"l

"नहीं कालीचरण, ऐसा कैसे संभव है, कुछ तो अवश्य छोड़ा होगा"l

"जी मैडम, जो अब्बू बोले, वह बोलने में हमको अच्छा नहीं लग रहा"l

"ऐसा नहीं कहते काली चरण, बेझिझक बोलो"l

"अब्बू बोले कि हमारे पुरखे हमारे लिये भूख, गरीबी और ढेर सारी बीमारियाँ  छोड़ गये विरासत में"l

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by TEJ VEER SINGH on September 5, 2016 at 1:53pm

हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।आपने लघुकथा को सराहा तथा उसकी विवेचना की।आपका "अब्बू" शब्द पर जो विचार है वह कुछ हद तक सही है।लेकिन ऐसा कतई नहीं है कि यह यहां नहीं प्रयोग करना चाहिये था।हक़ीक़त यह है कि मैंने यह जान बूझकर किया है।हमारे गॉव में एक छोटी जाति के परिवार का घर मुस्लिम समुदाय के बीच था।वह परिवार हमारे खेतों पर काम करता था।उसके सभी बच्चे अपने बाप को अब्बू और माँ को अम्मी बुलाते थे।मेरे बच्चे मुझे दादा कह कर बुलाते थे जबकि हमारे यहाँ दादा बड़े भाई को बुलाते हैं।बहुत सी दफ़ा बच्चे अपने इर्द गिर्द के माहौल से भी कुछ बातें सीख लेते हैं।सादर।

Comment by Samar kabeer on September 5, 2016 at 12:03pm
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,"विरासत"शीर्षक पर आपकी ये लघुकथा भी प्रभावी रही,बहुत बहतरीन तरीक़े से इसे परिभाषित किया है आपने,इस शानदार प्रस्तुति पर दिल से ढेरों बधाई स्वीकार करें ।
कालीचरण का अपने पिता को "अब्बू"कहना खटक रहा है ।
Comment by Mahendra Kumar on September 5, 2016 at 10:30am
बहुत ही शानदार लघुकथा लिखी है आपने आदरणीय तेजवीर सिंह जी। मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार करें!

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