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बस अड्डे में बैठे हुए उसे दो घंटे हो चुके थे। आंधी - तूफ़ान और तेज बारिश ने सारे बसों के पहिंए रुकवा दिए थे। वह बार बार पूछताछ में जाती और अगली गाड़ी कब निकलेगी उसका पता करती। आज उसे अपरिहार्य करणो से देर हो गई थी और अँधेरा हो चुका था। अब उसकी माथे पर सिकन की लकीरे साफ़ देखी जा सकती थी।
कुछ मनचले भी उसे देख- देख कर उसके बातें बनाने लगे थे और बार-बार उसके इर्द-गिर्द चक्कर काट रहे थे। उसे अब डर लगने लगा था। तभी उसकी बगल में एक अधेड़ उम्र का आदमी आकर बैठ गया जो उसे दूर एक चाय के होटल से बैठकर देख रहा था। उस आदमी ने उससे पूछा, " कहाँ जाना है तुम्हे ? " लड़की ने अनसुना कर दिया उसकी बातों को। थोड़ी देर बाद उस आदमी ने फिर से पूछा, " मैंने पूछा कहाँ जा रही हो ? " अब उसने उस आदमी को देखा और बोली, " आपसे मतलब! " उस आदमी ने कहा, " देखो, इस समय ये जगह बदमाशो का अड्डा बन जाती है, और कुछ तो आस-पास ही घूम रहे। " लड़की ने जवाब में कहा, " तो इसमें आपको क्या ? वो मेरी दिक्कत है, मैं इनसे निपट सकती हूँ, आप मेरी चिंता ना करे। " उस आदमी ने ग़ुस्से से कहा, " यही तो तुम नई पीड़ी की समस्या है, बड़ो की सुनते नही, बस अपनी मनमानी करते हो। " लड़की ने उस आदमी झिड़कते हुए कहा, " अज़ीब आदमी हो ? ना जान ना पहचान अच्छा मेरे गले पढ़ रहे। दूर रहो मुझसे। " उस आदमी ने अपने बटुवे से एक फ़ोटो निकाला और कहा, " ये मेरी बेटी है। बिलकुल तुम्हारी ही उम्र की और बहुत ही निडर और स्वतंत्र ख़्यालों वाली थी पर ट्रेन में सफ़र करते वक़्त कुछ बदमाशों ने इसकी इज्ज़त लूट ली और उसके बाद उसे चलती ट्रेन से फ़ेंक दिया। छह दिन बाद उसकी लाश मिली वो भी सड़ी-गली हालत में। " ये कहते हुए उस आदमी का गला भर आया था। लड़की ने ये बात सुनके माफ़ी भरे लहज़े में कहा, " माफ़ कीजियेगा पर मैं अनजानों से ज्यादा बात नही करती। "उस आदमी ने लड़की से कहा, " कोई बात नही। देखो जैसी घटना मेरी बेटी के साथ हुआ वैसी घटना तुम्हारे साथ ना हो, इसलिए मैं उस चाय ठेले से तुम्हारे पास आ गया। "

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 17, 2016 at 9:42am
अच्छी कथा । थोड़ी कसावट की गुंजाईश दिखाई दे रही है । हार्दिक बधाई आदरणीय।
Comment by Ravi Prabhakar on August 14, 2016 at 7:48pm

प्रिय भाई लघुकथा स्‍पष्‍ट नहीं हो पाई कि इस लघुकथा के माध्‍यम से आप कहना क्‍या चाह रहे हो। कुछ कुछ वर्तनी अशुद्धियां भी खटक रही हैं। सादर

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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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