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माँ - जब हम पैदा भईनी
हम त कुछ न जानत रहनी
कि डायबिटीज भी कुछ होखेला
आ एकरा से जीवन में कुछ फरक परेला
हम त ईहे जानत रहनी कि
अइसही होखत होई - खूब भूख लगत होई -
अइसहीं होखत होई - कबो खूब घुमरी आवत होई
हाथ - पैर झनझनात होई - चश्मा लगवले पर ठीक लऊकत होई I

हमरा खातिर त ई दुनिया
तबो अइसने रहे - सामान्य
हमरा खातिर ई दुनिया
आजो अइसने बा - सामान्य
बाकिर हमार - ना - तहार दुनिया बदल गईल
तब तूं खूब रोवलू
जब तहरा के बतावल गईल -
लईका के "डायबिटीज" बा I

हम त कुछ न जानत रहनी
कि डायबिटीज भी कुछ होखेला
बाकिर जब दुनिया के
थोर बहुत समझ आवे लागल -
तब तहार चेहरा के भाव देख के
बुझाईल कुछ गड़बड़ बा
बाकिर का गड़बड़ बा
समझ में न आईल I

तब तूं हमार खान-पान
अनुशासित करे लगलू
- हम मिठाई मांगी - तूं कह ना
दूध में चीनी मांगी - तूं कह ना
हम तहरा से भात दाल मांगी -
तूं हमरा के रोटी दाल खियाव -
हम आलू के भुजिया खाए के चाहीं -
तूं हमरा के करेला खियावे के कोशिश कर I

दुनिया भर के टेस्ट - विशेषज्ञ के "consultancy"
बतावल गईल - लईका के बीमारी जन्मजात बा
"जेनेटिक fडस्पोfजसन" - कवनो सटीक इलाज नईखे
एह उम्र में - बस इंसुलिन ही इलाज बा -
शुरू में हम बहुत रोई - हम देखीं कि तोहूँ रोव
बाकिर अब आदत पर गईल बा
तूं रोवबू एहिसे अब ना कहिले - कि बहुत दुखाला -
बाकिर अब अपने से ले लिहिले - इंसुलिन के इंजेक्शन

माँ - ब्रहम बाबा कुछ ना करिहे -
गाँव के किनार के मठिया वाला बाबा भी
कुछ नईखन कर सकत - ना त सोखा बाबा
ना गाँव के सती माई - तहार महाबीर जी भी ना
समझ ल - हमार ईहे नियति बा -
दुनिया भर के दवाई - इंसुलिन के इंजेक्शन
दुनिया में जीवन अइसने होला हम त ईहे जानीले
अब त तूहूँ जान ल, अपना मन के मना ल I

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Comment

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Comment by aleem azmi on July 6, 2010 at 12:41pm
bahut sunder kavita aapki ....mubarak ho
Comment by BIJAY PATHAK on June 23, 2010 at 1:02pm
Bahut Badhiya
Comment by Sanjay Kumar Singh on June 22, 2010 at 2:57pm
माँ - ब्रहम बाबा कुछ ना करिहे -
गाँव के किनार के मठिया वाला बाबा भी
कुछ नईखन कर सकत - ना त सोखा बाबा
ना गाँव के सती माई - तहार महाबीर जी भी ना
समझ ल - हमार ईहे नियति बा -
Bahut hi sunder rachna aur bahut hi sunder prastuti hai,
Comment by satish mapatpuri on June 21, 2010 at 4:05pm
तब तूं हमार खान-पान
अनुशासित करे लगलू
- हम मिठाई मांगी - तूं कह ना
दूध में चीनी मांगी - तूं कह ना
हम तहरा से भात दाल मांगी -
तूं हमरा के रोटी दाल खियाव -
हम आलू के भुजिया खाए के चाहीं -
तूं हमरा के करेला खियावे के कोशिश कर I
नीलम जी. OBO पर आपका ब्लॉग देख कर बड़ा सुखद लगा. बड़ा अपनापन है इस रचना में, धन्यवाद.
Comment by Neelam Upadhyaya on June 21, 2010 at 12:36pm
Ji bahut bahut dhanyawaad. Hum age se raura sujhaw par amal kare ke koshish karab.
Comment by Admin on June 21, 2010 at 12:14pm
तब तूं हमार खान-पान
अनुशासित करे लगलू
- हम मिठाई मांगी - तूं कह ना
दूध में चीनी मांगी - तूं कह ना
हम तहरा से भात दाल मांगी -
तूं हमरा के रोटी दाल खियाव -
हम आलू के भुजिया खाए के चाहीं -
तूं हमरा के करेला खियावे के कोशिश कर इ

नीलम बहिन प्रणाम , सबसे पहिले त हम ओपन बुक्स ऑनलाइन पर राउर पहिला ब्लॉग के दिल से स्वागत करत बानी, बहुत ही नीमन रौवा कविता लिखले बानी, बेटा भा बेटी के अगर कवनो दुःख तकलीफ होला त महतारी बाप के केतना तकलीफ होला इ राउर कविता मे साफ़ झलकत बा, हम त महसूस भी कईले बानी कि जब कबो हमार तबियत ख़राब होखे त हमरा साथे साथे हमार माई आ पिता जी भी रात रात भर जागस आ हमसे छुपा के रो लेस , कि कही बबुवा रोअत देख लिही त वोकरा औरी तकलीफ होई,
बहुत सुंदर राउर अभिव्यक्ति बा, एह कविता खातिर बहुत बहुत आभार बा, साथ ही एगो नम्र निहोरा बा कि भोजपुरी के रचना पोस्ट करे खातिर ओपन बुक्स ऑनलाइन पर एगो अलग से "भोजपुरी साहित्य" नाम के ग्रुप बनावल बा , कृपा कर के भोजपुरी रचना वोइजा ही पोस्ट करी जेसे भोजपुरी साहित्य एक जगह ही पढ़े के मिल जाव , सुविधा खातिर हम लिंक नीचे दे देत बानी,

http://www.openbooksonline.com/group/bhojpuri_sahitya

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