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इश्क है ये मस्त खुशबू का कोई झोंका नहीं

२१२२  २१२२  २१२२  २१२

इक दफा ये मर्ज लग जाये तो छुटकारा नहीं  

इश्क है ये मस्त खुशबू का कोई झोंका नहीं 

यार तुमने जिन्दगी को गौर से देखा नहीं  

दरमियाँ मेरे तुम्हारे लक्ष्मनी  रेखा नहीं 

तपती साँसों की तपिश कुछ सच बयानी कर रही 

धड़कने कहती हैंं दिल की प्‍यार है धोखा नहीं 

इश्क का अहसास कैसे ज़िंदगी में आ गया 

शेख जी कुछ राय देंगे मैंने कुछ सोचा नहीं 

इश्क है रब की इबादत राज गहरा जान लो 

देख लो माली ने भंवरे को कभी टोंका नहीं है 

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by Ravi Shukla on June 20, 2016 at 5:02pm

आदरणीय आशुतोष जी आपके अाखिरी शेर के भाव समझ तो आ रहेे थे उसका आपने संशोधन भी किया हैै । आपका आशय यह है कि इश्‍क खुदा की देन है एक इबादत है इसीलिये तो माली ने भवरे और कली के शुद्ध प्रेम को देख कर उसे रोका टाेका नहीं 

आपके इसी भाव को यथावत रखते हुए एक त्‍वरित सुझाव इस तरह भी हो सकता है 

इश्क है रब की इबादत राज गहरा जान लो 

देख लो माली ने भंवरे को कभी रोका / टोका नहीं 

घड़कने दिल में इ जाफत का आभास हो रहा था जिसका इशारा आदरणीय गिरिराज जी ने किया था दो भिन्‍न भाषा के श्‍ाब्‍द की इजाफत मान्‍य नहीं है इस लिये शायद गिरिराज जी ने कहा था 

इसके लिये भी एक त्‍वरित सुझाव है 

तपती सांसों की तपिश क्‍या रूह से उठती नहीं 

धड़कने कहती हैंं दिल की प्‍यार है धोखा नहीं   आप के भाव के अनुरूप जो सही लगे उसी को रखें शेर में शायर की वैचारिक स्‍वतंत्रता के हम सदैव पक्षधर है । ये तो सोच को एक दिशा देने के लिये सुझाव मात्र है । सादर हमारे कहे को मान देने के लिये 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 20, 2016 at 4:15pm
आदरणीय गिरिराज भाई साब आपके और आदरनीय रवि सर केमार्गदर्शन के अनुरूप परिवर्तन के फिर से ग़ज़ल दरख रहा हूँ धड़क1ने दिल की जगह दिल की धड़कन से लक्षमण की जगह लक्षमनी रखने की सोच रहा था किन्तु इस शब्द से आस्वस्त नहीं हूँ आपका परामर्श चहोए इसके अतिरिक्त उडी अंतिम शेर को इस तरह किया जाये जब भवर कलियो से मिलते माली ने रोका नही इश्क़ को माने इबादत इसलिए टोंका नहीं आप बिवतजनो का परामर्श मिलने पर खामियों को और समजने में मदद मिलेगी भाई साब आपकी मैग्दर्शन प्ततिक्रिया के लिए ह्रदय आभारी हूँ सादर प्रणाम के साथ

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 20, 2016 at 11:25am

आदरणीय आशुतोष भाई , गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
1-- दरमियाँ मेरे तुम्हारे लक्ष्मण रेखा नहीं    --- मिसरा बे बहर है

2--

धड़कने दिल कह रही उल्फत है ये धोखा नहीं -- धड़कने दिल  -- ऐसा लग रहा है जैसे इजाफत लागया हो ,  धड़्कन हिन्दी शब्द है ।

3-- अंतिम शेर बात कह नही पा रहा है , देख लीजियेगा ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 17, 2016 at 10:09am

आदरणीय रवि सर आपकी प्रतिक्रिया से मुझे बेहद खुशी हो रही है ..आदरणीय सर मैं इस् पर फिर चिंतन करूंगा .इश्क को  इबादत सा मानने के कारन खलल न हो ऐसा सोचा था और इसी बात को ध्यान में रखकर कभी माली ने भ्रमर को रोका टोका नहीं ..आप थोडा खुल कर परामर्श देंगे तो मुझ जैसे कई सीखने वालों को फायदा होगा ..सादर नमन के साथ 

Comment by Ravi Shukla on June 16, 2016 at 5:40pm

आदरणीय डा आशुतोष जी बढि़या गजल कही है अापने बधाई स्‍वीकार करे आखिरी शेर के सानी मिसरे में कुछ अनकहा सा रह गया है बात साफ साफ नहीं आ पा रही है

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