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तपिश को कौन समझेगा
जलते शहर की
कुर्सी से जो मतलब ठहरा
विरोध प्रदर्शन धरने हडताल
दिहाडी को निगल गए
नहीं थमेंगे
गरीब को रोटी नहीं मिलेगी।
पहरेदार
सब कठपुतलियां हैं
सफेदपोशों की।
मजबूर
घोडे को लगाम जो लगी है
गरीब ने कहा
चलो गरीबों चलो कंगालो
मरने वालों को लाखों मिलते हैं
मरने चलें
दो-चार दिन का सूतक सही
दिहाडी-रोटी नहीं तो लाखों सही
पीछे वालों की जिंदगी
आराम से गुजरेगी।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 6, 2016 at 10:22am
श्रद्धेय मिथिलेश वामनकर जी रचना पर अपने कीमती विचार देने के लिए हार्दिक धन्यवाद कृपया मार्गदर्शन करते रहें
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 6, 2016 at 10:22am
श्रद्धेय मिथिलेश वामनकर जी रचना पर अपने कीमती विचार देने के लिए हार्दिक धन्यवाद कृपया मार्गदर्शन करते रहें
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 6, 2016 at 10:21am
श्रद्धेय मिथिलेश वामनकर जी रचना पर अपने कीमती विचार देने के लिए हार्दिक धन्यवाद कृपया मार्गदर्शन करते रहें
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 6, 2016 at 10:21am
श्रद्धेय मिथिलेश वामनकर जी रचना पर अपने कीमती विचार देने के लिए हार्दिक धन्यवाद कृपया मार्गदर्शन करते रहें
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 6, 2016 at 10:21am
श्रद्धेय मिथिलेश वामनकर जी रचना पर अपने कीमती विचार देने के लिए हार्दिक धन्यवाद कृपया मार्गदर्शन करते रहें
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 6, 2016 at 10:21am
श्रद्धेय मिथिलेश वामनकर जी रचना पर अपने कीमती विचार देने के लिए हार्दिक धन्यवाद कृपया मार्गदर्शन करते रहें
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 6, 2016 at 10:21am
श्रद्धेय मिथिलेश वामनकर जी रचना पर अपने कीमती विचार देने के लिए हार्दिक धन्यवाद कृपया मार्गदर्शन करते रहें
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 6, 2016 at 10:21am
श्रद्धेय मिथिलेश वामनकर जी रचना पर अपने कीमती विचार देने के लिए हार्दिक धन्यवाद कृपया मार्गदर्शन करते रहें

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 6, 2016 at 12:00am

आदरणीय सुरेश जी, इस प्रयास पर हार्दिक बधाई निवेदित है. सादर 

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 4, 2016 at 4:41pm
आदरणीय कल्पना भट्ट जी हार्दिक धन्यवाद

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