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ग़ज़ल-"नूर-ये ताबीज़ मुझ को फला देर से.

१२२/१२२/१२२/१२ 
.
कोई राज़ मुझ पर खुला देर से,
वो आँसू वहीँ था,, बहा देर से.
.

चिता की हुई राख़ ठंडी मगर,
सुलगता हुआ दिल बुझा देर से.
.

मैं दुनिया से लड़ने को तैयार था,
मगर ..ख़त तुम्हारा मिला देर से.  
.

तेरा नाम धडकन पे गुदवा लिया,
ये ताबीज़ मुझ को फला देर से.
.

हमारी सिफ़ारिश फ़रिश्तों ने की,
मगर आसमां ही झुका देर से.
.

अजब सी नमी लिपटी हर्फ़ों से थी,
वो ख़त तो जला पर जला देर से.
.

कई खेत प्यासे तड़पते रहे,
मिला बादलों को पता देर से.
.

भँवर, कश्तियाँ लीलता ही गया,
मगर वाँ भी पहुँचा.. ख़ुदा देर से. 
.

तू इंसान बेशक़ है आलातरीन,
तू पहचाना लेकिन गया देर से.  
.
निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित 

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 27, 2016 at 6:02am

शुक्रिया  आ. मिथिलेश जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 27, 2016 at 6:02am

शुक्रिया आ राहिला जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 27, 2016 at 6:02am

शुक्रिया आ. सरस जी 

Comment by दिनेश कुमार on April 27, 2016 at 5:10am
मैं दुनिया से लड़ने को तैयार था,
मगर ..ख़त तुम्हारा मिला देर से. ....कमाल
अजब सी नमी लिपटी हर्फ़ों से थी,
वो ख़त तो जला पर जला देर से......कमाल

आप बेहतरीन लिखते हैं आदरणीय निलेश भाई जी। वाअह वाह

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 27, 2016 at 12:07am

कमाल कमाल 

लाज़वाब 

आदरणीय निलेश जी, मुग्ध हूँ आपकी ग़ज़ल पढ़कर.

छोटी बह्र में आपका जादू देखकर मुग्ध हूँ. सादर 

Comment by Rahila on April 26, 2016 at 9:39pm
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल आद. निलेश साहब! बहुत बधाई ।सादर
Comment by saras darbari on April 26, 2016 at 9:37pm

आदरणीय Nilesh जी , पहली बार आपकी गजल पढ़ी ...वाह और सिर्फ वाह ......

हर शेर खूबसूरत , किस किसकी तारीफ करूँ ...........खास तौर पर यह शेर बहुत पसंद आए ,

कोई राज़ मुझ पर खुला देर से, 
वो आँसू वहीँ था,, बहा देर से.
.

चिता की हुई राख़ ठंडी मगर, 
सुलगता हुआ दिल बुझा देर से.
.

मैं दुनिया से लड़ने को तैयार था,
मगर ..ख़त तुम्हारा मिला देर से.  
.

तेरा नाम धडकन पे गुदवा लिया, 
ये ताबीज़ मुझ को फला देर से.

......वाह .........!

 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 26, 2016 at 9:30pm

शुक्रिया आ. तस्दीक़ साहब .... सही  फरमाया आपने.. मैं बोलचाल की भाषा में बह गया था, सही  शब्द देखा ही नहीं..शुक्रिया..
मूल प्रति में ठीक किये लेता हूँ ..
शुक्रिया  

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 26, 2016 at 9:29pm

शुक्रिया आ. राजेश दीदी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 26, 2016 at 9:28pm

शुक्रिया आ. चौहान साहेब 

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