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भगौड़े (लघुकथा) राहिला

मरणोपरांत मृतक युवक के कर्मो का हिसाब किताब करने की कार्यवाही शुरू हो चुकी थी। दूसरी दुनिया का दरोगा लेखा-जोखा देखने वाले से पूछताछ कर रहा था ।
"इस लड़के की उम्र विधाता ने कम लिखी थी क्या? "
"नहीं दरोगा साहब! उम्र तो खूब लिखी थी। लेकिन इसने खुदकुशी कर ली ।"
"क्यूं? "
"इसका इम्तेहान चल रहा था, पर ये बीच में ही भाग निकला। "
"क्यूं क्या इसने जीने की कला नहीं सीखी? "
"नहीं, ये सतयुग के प्राणी नहीं, कलयुग की खुदपरस्त पीढ़ी है।ना सब्र,ना मर्यादा, ना अनुशासन और ना अपनों की परवाह ।"
"खैर..,कितनी उम्र और बची थी इसकी? "
"पचास साल "
"पचास साल? खुदकुशी कैसे की इसने? "
"फाँसी लगाकर "
"तो ठीक है। अगले पचास साल इसे वैसे ही फाँसी पर लटकाते रहो जैसे इसने खुदकुशी की थी। "
"नहींsss.." युवक चीखा, फिर व्याकुल होकर बोला:
"आप नहीं जानते, मुझे खुदकुशी करते वक्त कितनी तकलीफ हुई थी। वही तकलीफ बार-बार पूरी उम्र तक? ये अन्याय है।"
"ये अन्याय नहीं, विधान है। अच्छा एक बात बतायो, जब कभी तुम घंटा दो घंटा देरी से घर पहुंचते थे तो तुम्हारे बूढ़े माँ बाप की क्या हालत होती थी?"
"जी, वो सब बहुत परेशान हो जाते थे।"
"और अब जबकि तुम हमेशा लिए उन्हें अकेला छोड़ आए, क्या ये सोचा कि अब उनका क्या हाल होगा?"
"इतनी भयानक सजा मत दीजिए।" दारोगा के पाँव में गिरते हुए युवक गिड़गिड़ाया।
उसकी पुकार को अनसुना कर संतरी को आवाज़ देते हुए दरोगा ने लगभग गुर्राते हुए आदेश दिया:
"ले जाओ इस भगौड़े को मेरी आँखों से दूर।"
.
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Rahila on May 22, 2016 at 1:26pm
बहुत आभार आदरणीय परवेज साहब!आपने अपना कीमती वक्त रचना को दिया ।सादर
Comment by Rahila on May 22, 2016 at 1:25pm
बहुत शुक्रिया आदरणीया वंदना जी ।सादर
Comment by Parvez khan on May 21, 2016 at 3:59pm
सच मे अप्रत्यासित रचना लजबाब शीर्षक के साथ नई पीढी आजकल सिर्फ अपने बारे मे सोचती है जिन्होने जन्म दिया पाला पोसा उन्हे जिदगी भर का गम दे जाते
Comment by vandana on May 21, 2016 at 10:13am

बहुत अच्छा विषय और सार्थक प्रस्तुति आदरणीया राहिला जी 

Comment by Rahila on May 17, 2016 at 6:57pm
बहुत शुक्रिया आदरणीय ललित सर जी! सादर नमन
Comment by Lalit Nageshwar Maharaj on May 16, 2016 at 3:59pm

बहुत ही शिक्षाप्रद प्रयास है.आज के दौर में बिलकुल ठीक बैठता है.

Comment by Rahila on May 15, 2016 at 10:35am
Thank u Ram Ashery sir ji!
Comment by Rahila on May 15, 2016 at 10:34am
बहुत, बहुत शुक्रिया आदरणीय सुशील सर जी! आपने इतने खूबसूरत लब्ज़ों में तारीफ़ की, कि मेरा हौसला दुगना हो गया । बहुत आभार ।सादर नमन
Comment by Ram Ashery on May 13, 2016 at 9:30am

very nice way you have expressed your feelings congratulation

Comment by Sushil Sarna on May 10, 2016 at 1:20pm

ले जाओ इस भगौड़े को मेरी आँखों से दूर।"
.वाह आदरणीया राहिला जी वाह ... आपने जिस विषय का चुनाव किया का वो वास्तव में वर्तमान का आईना है .... वर्तमान में अपनी जिम्मेदारियों,विफलताओं से डर के कारण स्वयं को समाप्त करने धारणा को आपने बडी ही मार्मिकता से चित्रित किया है। इस सन्देश देती लघु कथा की प्रस्तुति पर आपको हार्दिक हार्दिक बधाई। पता नहीं कैसे ये नज़र से चूक गयी। आपकी सोच , कलम को सलाम।

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