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शेक्सपीयर के नाम-एक सॉनेट

अगर मैं मर जाऊँ, प्रियतमा मत रोना तुम।
स्वर्ग लोग की तभी, घण्टियाँ सुन पाओगी।
अधम पतित संसार, को देना सूचना तुम।।
एक रूह इस जगत, अपावन से अब चल दी।।

तू ये रचना पढ़े, रचयिता याद न आये।
चाहत तो थी कई, किन्तु चाहत है ये अब।
दीवाना ये मनस, नगर में रह ना पाये।।
क्योंकि यदि सोचोगे, शोक में डूबोगे तब।।

जबकि माटी होकर, गीत ये लिखता हूँ मैं।
कहीं प्रेम का भाव, न जग जाये फिर तुझमें।
हो ना तू बदनाम, प्रियतमा डरता हूँ मैं।
मेरा नाम तलाश, करोगी तुम यदि इसमें।।

गर तुम पर छा गया, मेरा दीवानापन तो।
दुनियावी चालाक, हसेंगे हम दोनों पर।।

मौलिक-अप्रकाशित

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on May 12, 2016 at 2:23pm
आदरणीय राजेश दीदी सादर प्रणाम

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 12, 2016 at 9:50am

अच्छी प्रस्तुति आ० पंकज जी हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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