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गीत-ये प्रथम मिलन की रात

ये प्रथम मिलन की रात प्रिये!
तुम भूल न जाना।
तन-यौवन-रूप सजाया ज्यों,
घर-बार सजाना।।
ये प्रथम मिलन की रात प्रिये!
तुम भूल न जाना।

सुख-दुख में तुम सहभागी अब,
ये मन तुम पर अनुरागी अब।
तुमसे कुछ नही छिपाना है,
हिय का सब हाल बताना है।।
निश्छल मन में, निश्छल मन से,
अब तुम बस जाना।
ये प्रथम मिलन की रात प्रिये!
तुम भूल न जाना।।

पतझड़-सा सूना जीवन था,
नीरस मेरा घर आँगन था।
अब तुम जीवन में आई हो,
सतरंगी सपने लाई हो।।
इस सूनी जीवन-बगिया मे,
नव पुष्प खिलाना।
ये प्रथम मिलन की रात प्रिये!
तुम भूल न जाना।।

जब भी उदास हो जाऊँ मैं,
संघर्षों से घबराऊँ मैं।
सन्निकट चली तब आना तुम,
साहस सम्बल बन जाना तुम।।
मधुरिम व्यवहार सदा रख के,
मुझ को समझाना।
ये प्रथम मिलन की रात प्रिये!
तुम भूल न जाना।।

घर में खुशियों का वास रहे,
तुम पर सबका विश्वास रहे।
निज स्नेह-सुमन बिखराना तुम,
घर-आंगन को महकाना तुम।।
घर के अँधियारे कोनों में,
तुम दीप जलाना।
ये प्रथम मिलन की रात प्रिये!
तुम भूल न जाना।।

सुख-दुख जीवन में आते हैं,
दो दिन रहते, फिर जाते हैं।
लेकिन तुम साथ खड़ी रहना,
हर कदम साथ मेरे चलना।।
परिणय के सात वचन सजनी!
तुम सदा निभाना।
ये प्रथम मिलन की रात प्रिये!
तुम भूल न जाना।।

-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Ravi Shukla on March 23, 2016 at 10:53pm
आदरणीय राम बली जी सुन्दर भावाभिव्यक्ति हुई है आपके गीत में हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

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