For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिन्न(लघुकथा )राहिला

गृहस्थी का काम मिनट -मिनट को पकड़ कर पूरा किये जा रही थी । सारा दिन चकरघिन्नी बनने के बावजूद किसी ना किसी के कोप का भाजन बन ही जाती । मुझे समझ नहीं आता आखिर किस ने ये दुनियादारी के नियम बनाये और किस ने सारे काम का बंटवारा इतने अन्यायपूर्ण ढंग से किया।हाथ पर हाथ धरे सुविधाओं का रसपान करने वाले घर के लगभग सभी सदस्यों के पास "आका "वरदान था और मैं? मैं किसी घटिया सी कहानी के उस जिन्न की तरह थी जो अपने आका के हुकुम पूरा करने में लगा रहता।मैं अकेली थी, तो बहुत दुःखी थी लेकिन तब तक, जब तक कि मैंने जिन्न होने वाली बात छुपा कर रखी थी।लेकिन आज अचानक मेरे मुंह से ये राज खुल गया । और फिर मेरे जैसी ढेर सारे जिन्न मेरी सखियां बन गये ।
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 783

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rahila on February 24, 2016 at 11:24am
बहुत शुक्रिया आदरणीय सर जी! मैं आगे से ध्यान रखूगीं । आपने इस विधा की बेहद महत्त्वपूर्ण जानकारी दी है । इसके लिये सादर आभार ।

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 24, 2016 at 10:54am

भाव बेशक अच्छे हैं, लेकिन शिल्प और कहन के हिसाब से यह लघुकथा बहुत कमज़ोर है राहिला जीI लघुकथा में स्व-संवाद शैली कोई बेहतर शैली नहीं मानी जातीI उम्मीद है कि आप नज्र-ए-सानी फरमायेंगीI  

Comment by Rahila on February 23, 2016 at 10:23am
बहुत -बहुत आभार आपका आदरणीया कांता दी!जितनी सुन्दर आपकी टिप्पणी ,उतनी ही सुखद आपकी उपस्थित । सादर नमन
Comment by kanta roy on February 23, 2016 at 9:22am
बहुत सारी जिन्न ! और वे सखियाँ ! ओह , यह तो बहुत गहरी बात कर दी आपने । सुना है जिन्न के दिन भी फिरने वाले है । चलिए उस दिन का जरा इंतजार करते है । बेहतरीन लघुकथा आदरणीया राहिला जी । बधाई कबूल फरमाईयेगा ।
Comment by Rahila on February 22, 2016 at 3:42pm
इतनी गहनता के साथ अवलोकन!!मैंने नहीं सोचा था कि आप मेरी रचनाओं के शीर्षक को इतनी गंभीरता के साथ लेगें।इस तारीफ़ के लिये तहेदिल से शुक्रिया । हां आप जिस लाइन के बारे में कह रहे है वाकई बहुत बार पढ़ा और बदला फिर फाइनल कर पाई थी उसे । मैं आपकी प्रतिक्रिया का ही इंतेजार कर रही थी आदरणीय सुनील जी! बहुत आभार आपका जो आपने रचना की तारीफ़ कर मान बढ़ाया ।सादर
Comment by Rahila on February 22, 2016 at 1:38pm
आदरणीय प्रतिभा दी! इस कदर हौसला अफज़ाई पा कर दिल झूम उठा । और वहीं बहुत ज्यादा जिम्मेदारी का भी एहसास बड़ गया । कोशिश करूंगी आप सब की उम्मीदों पर खरी उतर पाऊं । सादर
Comment by pratibha pande on February 22, 2016 at 1:25pm

  पहले जिन्न सिर्फ घर में ही मुस्तैद रहता था ,पर आज तो बाहर भी रहना पड़ता है ,और दोनों जगह मुस्तैदी की दरकार हर दिन बढती ही जाती है,   राहिला जी ,आप हर दिन लघुकथा  विधा में नई ऊँचाइयाँ छू रही है ,ढेरों बधाई व् शुभकामनाएँ 

Comment by Rahila on February 21, 2016 at 3:57pm
बहुत आभार आदरणीया नीता दी! यकीनन गृहस्थी में ढेरों अंधे काम होते है जिन्हें करते-करते एक हाउसवाईफ को सांस लेने की फुर्सत नहीं मिलती। लेकिन फिर भी ’सारा दिन तुम्हें काम ही क्या है’जैसे जुमले अक्सर आहत कर जाते है । आपने रचना के मर्म को समझा ,बहुत शुक्रिया ।सादर
Comment by Rahila on February 21, 2016 at 3:51pm
आदरणीय समर कबीर सर जी! आपको रचना पसंद आई मेरा तो लिखना ही सार्थक हो गया ।बहुत आभार ।सादर नमन।
Comment by Nita Kasar on February 21, 2016 at 3:19pm
यंत्रवत मशीन की तरह वह घर संभाले तब भी उसे हाउसवाइफ का तमग़ा मिलता है अपने ही संवेदनहीन हो सकते है।क्योंकि उनके लिये जिन्न मौजूद है।बिल्कुल अलग ही परिप्रेक्ष्य में लिखी कथा के लिये बधाई आद० राहिला जी ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
8 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"   आदरणीय सुशील सरना जी सादर, लक्ष्य विषय लेकर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई…"
9 hours ago

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सौरभ पाण्डेय, इस गरिमामय मंच का प्रतिरूप / प्रतिनिधि किसी स्वप्न में भी नहीं हो सकता, आदरणीय नीलेश…"
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय समर सर,वैसे तो आपने उत्तर आ. सौरब सर की पोस्ट पर दिया है जिस पर मुझ जैसे किसी भी व्यक्ति को…"
11 hours ago
Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
18 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service