For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 

 1212         1122      1212     22

 

               हिसाब ( गजल )

----------------------------------------------------

खुदा के सामने सबका हिसाब होता है

हरेक शख्स वहां बे-नकाब होता है  

 

अगर सवाल कोई है तो पूछ ले रब से

कि उसके पास तो सबका जवाब होता है

 

बिछे हों राह में कांटे अगर तो डर कैसा 

इन्हीं के बीच में खिलता गुलाब होता है

 

धरम के नाम पे मिलकर रहें तो अच्छा है

धरम के नाम पे लड़ना खराब होता है

 

हमारे मुल्क ने अब्दुल हमीद को जन्मा   
तुम्हारे मुल्क में अजमल कसाब होता है

----------------------------------------------------

 ( मौलिक व अप्रकाशित )

 

 

Views: 580

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sachin Dev on February 5, 2016 at 1:24pm

आ. भाई मिथलेश वामनकर जी गजल पर आपकी उपस्तिथि और अनुशंषा से बहुत उत्साहवर्धन हुआ साथ ही आ. समीर जी के सुझावों को गजल मैं आत्मसात करने का प्रयास रहेगा ! हार्दिक धन्यवाद आपका ! 

Comment by Sachin Dev on February 5, 2016 at 1:22pm

आ. भाई सतविंदर कुमार जी आपका हार्दिक आभार उत्साहवर्धन के लिए ! 

Comment by Sachin Dev on February 5, 2016 at 1:21pm

आ. समीर कबीर जी गजल पर आपका प्रोत्साहन पाकर बहुत प्रसन्नता हुई और गजल मैं सुधार बाबत आपके बहुमूल्य सुझावों को दिल से स्वीकार करते हुए आपका हार्दिक आभार , ऐसे ही मार्गदर्शन और प्रोत्साहन की अपेक्षा सहित ! 

Comment by Sachin Dev on February 5, 2016 at 1:19pm

आ. नादिर खां साहब गजल पर आपके प्रोसाहन के लिए हार्दिक आभार आपका ! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 4, 2016 at 11:09pm

शानदार जानदार जबरदस्त 

आदरणीय सचिन भाई जी, कमाल की ग़ज़ल हुई है, बस उस्ताद जी की इस्लाह पर गौर कीजिये, ग़ज़ल लाजवाब हो जायेगी. इस ग़ज़ल पर दिल से दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 4, 2016 at 6:14pm
तारीफ़ करने को लफ्ज़ पड़ते कम
आपका हर शेर लाज़वाब होता है।
Comment by Samar kabeer on February 4, 2016 at 5:56pm
जनाब सचिन देव जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं !
कुछ बातों की तरफ़ ध्यान दिलाना चाहूंगा,दूसरे शैर का सानी मिसरा इस तरह करना उचित होगा ?
"कि उसके पास तो सबका जवाब होता है"
चोथे शैर में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ का दोष है,देखियेगा !
आख़री शेर का ऊला मिसरा इस तरह करना उचित होगा:-
"हमारे मुल्क ने अब्दुल हमीद को जन्मा",क्योंकि सही नाम "अब्दुल हमीद"है इसे हमीद अब्दुल नहीं कहा जासकता !
Comment by नादिर ख़ान on February 4, 2016 at 5:49pm

हमारे मुल्क ने जन्मा हमीद अबदुल को  
तुम्हारे मुल्क में अजमल कसाब होता है.....

आदरणीय सचिन जी बहुत खूब कहा  सच भी है, मिट्टी मिट्टी में फर्क बेहिसाब होता है |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
14 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
18 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
18 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service