For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

विवाद समाप्त होते न देख,मामले को कोर्ट के सुपुर्द कर दिया।शनि को भी पार्टी बनाया गया,बकायदा समन भेजा गया।निर्धारित तारीख पर कोर्ट में उपस्थिति हेतु आवाज लगाई।सभी पार्टियां मुस्कुरा रही थी,हूंह अब शनि आयेंगे गवाही देने।तत्क्षण विटनेस बाक्स में भुजंग काला सुगठित शरीर,गदा लिए,दिव्य प्रकाश के साथ उपस्थित हुए।विस्मय से चकित न्यायाधीश ने शपथ की कार्रवाई कराई ।
"सत्य बोलूंगा,सत्य के सिवा कुछ नहीं बोलूंगा,जो भ्रमित है ,उन्हें भी सत्य पर चलना सिखाता हूँ।"
" तो प्रवेश पर रोक क्यों लगाई ?"
"मैंने कब रोक लगाई? लोग स्वयं डरते हैं, मेरे पास आने में, उल्टे सीधे कर्म करते हैं ,और मुझे दोष देते हैं।"
"फिर क्या करते हो?"
"मुझे जगाना पड़ता है,सीधे रास्ते लाने के लिए कभी,कभी पटखनी भी देना पड़ती है ।कभी ढाई साल,
कभी साढ़े सात साल अंकुश लगाए रखना पड़ता है।"
"तेल नहीं चढाने दे रहे हैं "
"मुझे काला तिल और काले तिल का तेल पसंद है,सोचा
था लोग समझेंगे और तिल के तेल का उपयोग स्वंय भी करेंगे जो सर्वोत्तम है।परंतु तिल की पैदावार ही बंद कर दी ,और चढा रहे हैं सोयाबीन का तेल,तथा गुणगान कर रहे हैं विदेशी जैतून तेल का।"
"हे न्याय प्रिय,आपने पधार कर हमें उपकृत किया,एक अंतिम सवाल,आप शनि देव हैं या शनि महाराज?"

यह तो इन्सानों की माया है ,उन्हें तो पत्थर को भगवान
बनाने की आदत है।

पवन जैन ,जबलपुर ।
( मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 758

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pawan Jain on February 6, 2016 at 7:57pm

आदरणीय सौरभ पांडे सा0 बहुत बहुत आभार ।आपकी कथा पर उपस्थित से उत्साह वर्धन हेतु सादर धन्यवाद।

आदरणीय सतविंदर कुमार जी आभार।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2016 at 1:18am

संवाद के ज़रीये लघुकथा बढ़ती है. लेकिन कई बार संवाद बढ़ जाते हैं. पंच-लाइन के इर्द-गिर्द बुनी गयी यह कथा उसी पंचलाइन के बरअक्स और कसती भी. बहरहाल पंचलाइन की धमक तो बनी ही रहती है. इसके लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय पवन भाई. 

आदरणीय विजय शंकर जी ने बहुत ही गहन विन्दु उठाये हैं. यही तो समस्त कर्मकाण्ड प्रक्रिया का सार है. लेकिन हम कुछ अधिक शिक्षित हो गये है न, मूर्खता को सचेत होने का नाम दिये बैठे हैं. ऐसी भी क्या सचेतावस्था कि आज तो सुधर नहीं पा रहा है, पौराणिकता के मर्म को भी घोंट कर गटकने के फेर मेंं सर्वनाश रहे हैं ! 

इस लघुकथा की वैचारिकता को नमन .. 

शुभेच्छाएँ 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 5, 2016 at 10:37pm
सुंदर।
Comment by Pawan Jain on February 5, 2016 at 8:41pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय सुशील सरन जी।

Comment by Sushil Sarna on February 5, 2016 at 7:16pm

बहुत सुंदर आदरणीय पवन जी  .... इस लघु कथा में आप शनि के माध्यम से बहुत कुछ कह गए। समझने वाले समझ गए जो न समझे वो    .......  इस संदेशप्रद प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। 

Comment by Pawan Jain on February 5, 2016 at 8:22am

आदरणीय मिथिलेश वामनकर सा0,उत्साह वर्धक टिप्पणी हेतु आभार।

Comment by Pawan Jain on February 5, 2016 at 8:18am

आदरणीय डॉ विजय शंकर जी,आपने कथा के मर्म पर बहुत सुन्दर व्याख्या की ,बहुत बहुत धन्यवाद।

Comment by Pawan Jain on February 5, 2016 at 8:14am

आदरणीय राहिला जी ,बहुत बहुत आभार।

Comment by Pawan Jain on February 5, 2016 at 8:12am

जनाब समर कवीर सा0 शुक्रिया।

Comment by Pawan Jain on February 5, 2016 at 8:10am

आदरणीय TEJ VEER SINGH जी बहुत बहुत आभार ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
4 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
11 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
11 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
12 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service