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यशोधरा.......अतुकांत // डॉ० प्राची

सुधि-बुधि बिसराई

व्याकुल पनीली आँखें,

अधखुले केश, बेसुध आँचल
अस्त-व्यस्त आभूषण...
कराहती सिसकती चीत्कारती

पल-पल जमती जाती करुण वाणी से
कहाँ-कहाँ नहीं पुकारा-

पर,

लौट-लौट आती थी

हर पुकार की कर्णपटों को बेधती

हृदय विदारक प्रतिध्वनि...

लिख चुकी थी नियति
यशोधरा के भाग्य में
अंतहीन  निष्ठुर विरह...

कितनी प्रबल रही होगी

सत्यान्वेषण को आतुर

अंतरात्मा की वो पुकार,

कि नहीं थम सके-

राजपाट त्याग,

धर्म मार्ग पर बढ़ते

मुमुक्षु कदम...

अतुल्य सुंदरी का निर्बाध प्रेम भी

लेष मात्र विचलित न कर सका
राजकुमार को उनके संकल्प से...

न ही हिम सम जड़ हुए पितृत्व को द्रवित कर

अपने सम्मोहन में आबद्ध कर सका
नवजन्मे पुत्र का कोमल संस्पर्श...


क्या ऐसे क़दमों की गति को 
आत्मा की आवाज़ के विरुद्ध चलने को विवश कर देना 
पाप नहीं होता???

 

आज फिर,
निर्बाध प्रेम का अथाह सागर 
कण मात्र भी विचलित नहीं कर सकेगा

कर्तव्य मार्ग पर बढ़ते एकाग्रचित्त संकल्पित हृदय को...
जीवन की ओर पग-पग बढ़ते

संघर्षरत शिशु की श्वासों का स्पंदन लिये

कोमल स्वप्नों की डोर भी
नहीं बाँध सकेगी

लक्ष्य की ओर उड़ान भरने को आतुर

खुले पंखों की प्रखर रवानी को...
कोई वैचारिक सम्मोहन अपनी माया में उलझा

क्षण भर को भी पथच्युत नहीं कर सकेगा  

कर्तव्य मार्ग पर बढ़ते अन्तःसंकल्पित क़दमों को...

जो चले हैं

आज फिर

एक नया इतिहास रचने,
देश काल निमित्त सब आतुर हैं

जिसके स्वागत को...

जाओ!

समयशिला पर गढ़ दो

आज फिर एक नया अध्याय 
कि नहीं रोकेगा आज यशोधरा का प्रेम-

सिद्धार्थ को बोधिसत्व पाने से...

 

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 4, 2016 at 6:22pm
बहुत सुंदर।वर्तमान को इतिहास से जोड़ एक तपस्विनी को योग्य सम्मान नज़र करती सुंदर रचना।आपकी यह रचना इस आधुनिक यशोधरा को सच्ची शब्दांजलि है।बधाई आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 4, 2016 at 12:35am

आदरणीया डॉ प्राची जी, यशोधरा की वेदना और संवेदना को बहुत सधे शब्द मिले है. इस शानदार प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 3, 2016 at 11:40pm
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। इतिहास , त्याग , करुणा , वेदना , विछोह , और अंत में आशाएं ( छिपा हुआ व्यंग ) भी , कुल मिला कर एक अद्वितीय प्रस्तुति।
बहुत बहुत बधाई आदरणीय डॉo सुश्री प्राची सिंह जी , सादर।
Comment by TEJ VEER SINGH on February 3, 2016 at 12:31pm

हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ प्राची सिंह जी!बेहतरीन प्रस्तुति!यशोधरा की विरह को एक नये रूप में दर्शाती सुंदर रचना!

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