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स्वप्न को समर्पित (लघुकथा)

लेखक उसके हर रूप पर मोहित था, इसलिये प्रतिदिन उसका पीछा कर उस पर एक पुस्तक लिख रहा था| आज वो पुस्तक पूरी करने जा रहा था, उसने पहला पन्ना खोला, जिस पर लिखा था, "आज मैनें उसे कछुए के रूप में देखा, वो अपने खोल में घुस कर सो रहा था"

फिर उसने अगला पन्ना खोला, उस पर लिखा था, "आज वो सियार के रूप में था, एक के पीछे एक सभी आँखें बंद कर चिल्ला रहे थे"

और तीसरे पन्ने पर लिखा था, "आज वो ईश्वर था और उसे नींद में लग रहा था कि उसने कल्कि अवतार कर सृजन कर दिया"

अगले पन्ने पर लिखा था, "आज वो एक भेड़ था, उसे रास्ते का ज्ञान नहीं था, उसने आँखें बंद कर रखीं थीं और उसे हांका जा रहा था"

उसके बाद के पन्ने पर लिखा था, "आज वो मीठे पेय की बोतल था, और उसके रक्त को पीने वाला वही था, जिसे वो स्वयं का सृजित अवतार समझता था, उसे भविष्य के स्वप्न में डुबो रखा था"

लेखक से आगे के पन्ने नहीं पढ़े गये, उसके प्रेम ने उसे और पन्ने पलटने से रोक लिया| उसने पहले पन्ने पर सबसे नीचे लिखा - 'अकर्मण्य', दूसरे पर लिखा - 'राजनीतिक नारेबाजी', तीसरे पर - 'चुनावी जीत', चौथे पर - 'शतरंज की मोहरें' और पांचवे पन्ने पर लिखा - 'महंगाई'|

फिर उसने किताब बंद की और उसका शीर्षक लिखा - 'मनुष्य'

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by Nita Kasar on February 7, 2016 at 8:12pm
मानव तेरे रूप अनेक इशारों ही इशारों में करारा व्यंग्य किया है कथा में बधाईयां आपको आद०चंद्रेश छतलानी जी ।
Comment by kanta roy on January 23, 2016 at 10:49am
मानव ही एकमात्र ऐसा जीव है जो अपने भौतिक स्वरूप को स्थायी रख कर ,वह विविध भेष को जीता है । इंसानियत को तौलते हुए , स्वंय की कामना पूर्ति हेतु , विविध रूपों को गढती , चिंतन को विस्तारित करती , इस कटाक्षपूर्ण लघुकथा के लिए बधाई आपको आदरणीय चंद्रेश जी । इस पोस्ट के फीचर पोस्ट होने की दुबारा बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on January 20, 2016 at 1:10pm

rचना को पसंद कर टिप्पणी द्वारा  मेरे उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय फूल सिंह जी|

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on January 20, 2016 at 1:08pm

rचना को पसंद कर टिप्पणी द्वारा  मेरे उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी भाई जी|

Comment by PHOOL SINGH on January 18, 2016 at 2:39pm

अति सुंदर रचना आपको बहुत  बहुत बधाई स्वीकार हो


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 18, 2016 at 7:56am

आदरणीय चन्द्रेश भाई , संकेतों मे कही आपकी लघुकथा बहुत सुन्दर लगी , हार्दिक बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

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