For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हमीद की माँ की मुस्कान ( लघु कथा )

जयेश के घर चारों मित्र सपरिवार ज़मा हैं। हँसी-ठहाके, दुःख-दर्द चाय और समोसों के साथ उड़ाये जा रहे हैं।

टीवी चैनलों पर सहिष्णुता और असहिष्णुता पर दिग्गज लोगों की बहस ज़ारी है।
धर्म, राजनीति और देश,बहस के रूप में कमरे का तापमान बढ़ानें को पर्याप्त हैं । पत्नियाँ दूसरे कोने में अपने-अपने घर -बच्चों में रमी हैं।

एकाएक चंद्रप्रकाश ने दीवार पर लगे पारिवारिक चित्र को देख कर पूछा -" जयेश ! तुम तो बहुत छोटे हो इसमें बाकि और कौन-कौन हैं ?"
"हम चार भाई ,दीदी,माँ -पिताजी और बीच में खड़ी हमीद की माँ ।"

अचानक कमरे में सन्नाटा छा गया।
" मैं समझा नहीं ,पारिवारिक चित्र में ये क्यों ?" चन्द्रप्रकाश बोला।

"अरे भाई ! तस्वीर खींचते समय ये वहाँ खड़ी थी। इसलिए उन्हें भी बुला लिया।बहुत ही नेक और अच्छी थीं।उनके हाथों की गर्म रोटियां आज़ भी याद आती हैं। पूरा मोहल्ला उनके परिवार को पसन्द करता था।

अब सब नए सिरे से तस्वीर का अवलोकन कर रहे थे। और फ़ोटो में हमीद की माँ की मुस्कान ,मोनालिसा की मुस्कान को मात दे रही थी।

मौलिक एवम् अप्रकाशित ।

Views: 860

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Janki wahie on November 7, 2015 at 12:15am
आदरणीय सभी गुणी जनो का हार्दिक और सादर आभार ।कथा पसन्द आना उसके लिए सार्थक हुआ। शत शत नमन।
Comment by Abid ali mansoori on November 6, 2015 at 11:35pm

हृदय से वधाई आपको!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 6, 2015 at 10:14pm

सामाजिकता के कई स्तरों पर जैसी और जो कुछ बातें होती हैं, वस्तुतः ज़मीनी स्तर पर ऐसा कुछ भी नहीं होता. आम तौर पर सभी सह-अस्तित्व में रहना और जीना सीख लेते हैं. फिर यह एक आदत हो जाया करती है जिसका निर्वहन अनायास हुआ करता है. बिना किसी प्रयास के. इस तथ्य को सशक्तता से सामने रखती इस लघुकथा के लिए आपको, आदरणीया जानकीजी, हार्दिक बधाई देता हूँ.

मेरे परिवार की भी एक तस्वीर है जिसमें एक बड़े परिवार के सदस्यों के बीच मैं एक दस वर्षीय बालक हूँ.  सभी पारिवारिक सदस्यों के साथ दो-तीन लोग वो भी हैं जो हमारे पैत्रिक परिवार के सदस्य नहीं हैं. उनको लेकर हम आज भी भावुक हो जाते हैं.  

शुभ-शुभ

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 6, 2015 at 9:59pm
अपने अनुभव के आधार पर मुझे यह सत्य कथा सी लगी । तहे दिल बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ आपको आदरणीया जानकी वाही जी इस अनुपम भाव पूर्ण सार्थक समसामयिक कृति के लिए।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 6, 2015 at 8:54pm

आदरणीया जानकी जी इस प्रस्तुति हेतु बधाई एवं शुभकामनायें 

Comment by मोहन बेगोवाल on November 6, 2015 at 7:19pm

 आदरणीया जानकी जी,  सहिष्णुता और असहिष्णुता के सबंध में बहुत ही बड़िया लघुकथा कहने कि लिए बधाई, मेरी समझ मुताबिक इतना सधारन नहीं है, जैसा  आप जी की रचना से लग रहा है  

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 6, 2015 at 6:34pm
सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया जानकी जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service