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स्वेटर (लघुकथा)

जनवरी की हड्डी कंपा देने वाली ठंड..मैं ऊपर से नीचे तक गर्म कपड़ों के बावजूद कांप रही थी ।कक्षा में पहुंच कर एक नजर, मेरे सम्मान में खड़े सभी बच्चों पर डाली और बैठने का इशारा किया । तभी मेरी नजर उन बच्चों पर पड़ी जिनके बदन पर कपड़ों के नाम पर बस कपड़ों का नाम था।मैंने उन सभी बच्चों को खड़ा कर दिया ।
"क्यों!स्वेटर कहां है तुम्हारे?स्कूल से स्वेटर के लिये पैसा मिला ना तुम लोगों को फिर..?"लहजा सख्त था । बच्चे सहम गये ।फिर सामने जो कहानी आई बेशक अलग-अलग थी लेकिन नतीजा एक,कि उनके अभिभावक सारा पैसा अपने निजी स्वार्थ पर खर्च कर चुके है ।और वो मासूम डांट के डर से सफाई दे रहे थे-"दीदी!गेहूं की फसल पर स्वेटर आ जायेगा"
"कब"मैंने हैरानी से पूछा ।
"दो महीना बाद "।

.
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Rahila on October 29, 2015 at 8:35am
बहुत शुक्रिया आदरणीय सुनील जी! आपको मेरी रचना पसंद आई । बहुत आभार ।
Comment by Rahila on October 29, 2015 at 8:28am
बहुत शुक्रिया आदरणीय सुनील जी! आपको मेरी रचना पसंद आई । बहुत आभार ।
Comment by Rahila on October 29, 2015 at 8:25am
बहुत शुक्रिया आदरणीय सुनील जी! आपको मेरी रचना पसंद आई । बहुत आभार ।
Comment by Rahila on October 22, 2015 at 10:27pm
ओह. .वाकई मेरे लिये ये बहुत अहम पल है । लेकिन इस सम्मान का सारा श्रेय आपको जाता है आद.कांता दी!आपके मंच से मैंने शुरूआत की और लेखन क्षेत्र में मेरी प्रथम गुरू मां आप ही है । अपनी शिष्या का प्रथम सम्मान आप ,श्रेय रूप में स्वीकार करें । और अपने आशीर्वाद से मुझे धन्य करें।
Comment by kanta roy on October 22, 2015 at 10:14pm
मै जानती थी ये बात आदरणीया राहिला जी । आपकी रचनाएँ अब करीब एक महीने तक सामने के पोस्टर पर रहेंगी । यह सम्मान परिपक्व और श्रेष्ठ रचना को ही प्राप्त होता है । आप एक बार और बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Rahila on October 22, 2015 at 10:08pm
आद. कांता दी!बधाई तो तब स्वीकार करूं जब फीचर पोस्ट का मतलब जान पाऊं ।मुझे तो आपकी बधाई से सिर्फ इतना आभास हुआ है कि कुछ खुशी की बात है मेरे लिये ।
Comment by kanta roy on October 22, 2015 at 9:54pm
आदरणीया राहिला जी , आपकी कथा को फीचर पोस्ट का सम्मान मिला है । यह बहुत बडी बात होती है लेखक के लिये । इस गौरव पल के लिए बहुत बहुत बधाई आपको । सादर
Comment by Rahila on October 22, 2015 at 10:38am
बहुत आभार आद.कांता दी !बहुत शुक्रिया,आपने मेरी रचना को पसंद किया ।
Comment by kanta roy on October 22, 2015 at 6:39am
बेहद मार्मिक लघुकथा हुई है यह आदरणीया राहिला जी । सर्दी , स्वेटर और इंतज़ार गेंहू के कटने का , मन को जैसे विचलित ही कर गई ।बहुत बहुत बधाई आपको इस सार्थक रचना के लिये ।
Comment by Rahila on October 21, 2015 at 8:40pm
बहुत आभार आद.ओमप्रकाश जी!बहुत शुक्रिया,आपने मेरी रचना को पसंद किया ।

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