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ग़ज़ल - लहू इंसाँ का हूँ , सस्ता रहा हूँ ( गिरिराज भंडारी )

1222    1222    122 

बहुत बेकार सा चर्चा रहा हूँ

मैं सच हूँ, आँख का कचरा रहा हूँ

 

बहा हूँ मै सड़क पर बेवजह भी

लहू इंसाँ का हूँ , सस्ता रहा हूँ

 

जो समझा वो सदा नम ही रहा फिर

मै आँसू ! आँखों से बहता रहा हूँ

 

महज़ इक बूँद समझा तिश्नगी ने

भँवर के वास्ते तिनका रहा हूँ

 

जलादूँ एक तो बाती किसी की   

इसी उम्मीद में दहका रहा हूँ   

 

मुझे मानी न पूछें ज़िन्दगी का

अभी ख़ुद को ही मैं समझा रहा हूँ

 

किसी के वास्ते खुशियों का कारण

किसी की राह का काँटा रहा हूँ

 

बहे आँसू ने छू कर फिर जगाया

न जाने कब तलक सोता रहा हूँ

 

तेरी ही सोच ने मारा है मुझको

तेरी ही सोच में जीता रहा हूँ

*********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 15, 2015 at 3:12pm

आदरनीय धर्मेन्द्र भाई , आपकी सराहना सर माथे पर , उत्साह वर्धन के लिये आपका आभारी हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 15, 2015 at 3:11pm

आदरणीय मिथिलेश भाई , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 15, 2015 at 3:10pm

आदरणीया कांता जी , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 15, 2015 at 3:02pm
अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय गिरिराज जी, दाद कुबूल कीजिए

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 15, 2015 at 1:36pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी सर, इस ग़ज़ल को आज देख सका हूँ. बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई है. शेर दर शेर दिल से दाद हाज़िर है. सादर 

Comment by kanta roy on October 7, 2015 at 1:16pm

बहुत बेकार सा चर्चा रहा हूँ
मैं सच हूँ, आँख का कचरा रहा हूँ ········वाह !!!! सच तो वाई आज के दौर में कचरा ही रह गया है। बहुत खूब कटाक्ष हुआ है। बधाई

बहा हूँ मै सड़क पर बेवजह भी
लहू इंसाँ का हूँ , सस्ता रहा हूँ···········वाह !!! बेमिशाल ! क्या बात है इस सड़क पर इंसान के लहू की। बड़ी ही तंजदार ग़ज़ल हुई है। हार्दिक बधाई आपको आदरणीय गिरिराज भंडारी जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 6, 2015 at 11:18am

आदरणीय समर भाई , सुखन नवाजी का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 6, 2015 at 11:18am

आदरणीय सतविन्दर भाई , आपको मेरी गज़ल पसन्द आयी जान कर खुशी हुई , आपका बेहद शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 6, 2015 at 11:17am

आदरणीय कृष्णा भाई , कहन की सहजता आपको भली लगी , मुझे बेहद खुशी हुई , सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।


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Comment by गिरिराज भंडारी on October 6, 2015 at 11:15am

आदरणीय जयनित भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।

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