For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सिमट कर नहीं रहता / लक्ष्य “अंदाज़

सिमट कर नहीं रहता

~~~~~~~~~~~~~~~

(लक्ष्य “अंदाज़”)

वैसे भी मेरे घर की चिलमन में सिमट कर नहीं रहता !!

रंग नहीं खुशबू है वो मधुवन में सिमट कर नहीं रहता !!

गहरी आँखों के पानी में इक किश्ती कोई डूबी तो क्या ,

रूप का दरिया एक ही दरपन में सिमट कर नहीं रहता !!

कल जब वो उस जंगल से ज़ख़्मी हुए पाँव लिए लौटा ,

बोला ये बनफूल किसी चमन में सिमट कर नहीं रहता !!

गीली माटी की सौंध में लिपटे खस को क्या पहचानोगे,

जो शज़र चन्दन है वो सहन में सिमट कर नहीं रहता !!

तू दरिया के बालू सा सौदागर तुझे मूर्तियों में गढ़ लेंगे ,

सहरा की रेत मैं किसी सावन में सिमट कर नहीं रहता !!

सूखती फसल लहलहाती बेटियाँ इक टुकड़ा बंजर ज़मीं ,

अब किसान जीव का धडकन में सिमट कर नहीं रहता !!

‘अंदाज़’ को न बदनाम कर उसके अंदाज़ बड़े अच्छे हैं ,

ये बात और वो अब तेरे दामन में सिमट कर नहीं रहता !!

मौलिक एवं अप्रकाशित 

©2015 “ANDAZ-E-BYAAN” Dr.L.K.SHARMA

 

Views: 393

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 17, 2015 at 7:28am

आदरणीय, शिल्प का आपने उल्लेख ही नही किया है , रचना मे कही बातें बहुत अच्छी लगी , आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 16, 2015 at 10:30am

शिल्प के बारे में गुनीजन बताएं पर भाव की दृष्टि से रचना प्रभावित करती है .

Comment by kanta roy on September 16, 2015 at 6:02am
कल जब वो उस जंगल से ज़ख़्मी हुए पाँव लिए लौटा ,
बोला ये बनफूल किसी चमन में सिमट कर नहीं रहता !!...... वाह!!! बहुत ही खूबसूरत गजल कही है आपने आदरणीय डा. लक्ष्मी कान्त जी । बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service