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मौत मिली थी आ गले.....


जलियावाला बाग में, बारूदी था जोर. 
सारे जन मारे गए बचा न कोई और..

कातिल डायर ने कहा फायर फायर मार.
तड़ तड़ बरसें गोलियाँ भीषण करें प्रहार ..

मौत मिली थी आ गले वह होली ना ईद.
खूनी कहलाया कुआँ सारे हुए शहीद..

ऊधम लन्दन तक गए लेना था प्रतिकार.
डायर को प्रतिफल दिया करके तीक्ष्ण प्रहार..

निष्ठुर थे गोरे  बड़े किया सभी बरबाद.
दिल दहलाये कांड वह अब तक सबको याद..
--अम्बरीष श्रीवास्तव

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Comment by nemichandpuniyachandan on April 15, 2011 at 5:10pm
Shree Ambrish srivastav ji,Desh-Bhakti Ki kavita Bahut ki marmsparshi lagee.sundar rachana ke liye Badaaee.
Comment by Rajeev Mishra on April 15, 2011 at 1:42pm
बहुत ही सुन्दरता से इन दोहों मे आपने शहीदों को चित्रित किया है , एक सुंदर सन्देश आने वाली पीढ़ी को ...........पूर्वजों कि गाथा सुन और सुनाकर ही भविष्य तैयार होता है !
बहुत खूब  वाह !

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 15, 2011 at 12:40pm

अम्बरीश भाई, बेहद खुबसूरत दोहें आपने प्रस्तुत किये है, देश भक्ति से वोत प्रोत ये दोहें वाकई बहुत अच्छे बने है , बहुत बहुत बधाई | 

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