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मैं डरती झिझकती
सहमती नहीं हूँ
बिखरती भटकती
सिहरती नहीं हूँ
हक़ीक़त से रूबरू
होती हूँ रोज़
चमकते परो से
बहकती नहीं हूँ
अपने आसमां
की मल्लिका हूँ मैं
सोने के महलों मे
छिपती नही हूँ
उठती हूँ गिरती हूँ
गिरके सम्भलती हूँ
धधकती हूँ लेकिन
पिधलती नही हूँ
चट्टान सी मैं
खड़ी हूँ शिखर पर
अन्धड़ हो जितना
बिखरती नही हूँ
मुझसे हो जन्मे
डलते मुझी मे
साँसों की लय सी
मैं थमती नही हूँ
आज़मा लो मुझ पर
हथियार अपने
मौत के सफ़र से
मैं डरती नही हूँ
धरणी मनुजता की
प्रहरो से व्याकुल
पीके गर्ल भी
मैं मरती नही हूँ
मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by Harash Mahajan on August 27, 2015 at 9:02am
आदरणीय दीपू जी "मैं डरती झिझकती, सहमति नहीं हूँ" अपने भावों की अछि शुरुआत .... दिल के उत्पन्न भावों को अछि गति दी है आपने । बधाई !!! सादर ।

कृपया ध्यान दे...

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