For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्यार की आंच से ये फिर से पिघलते क्यूँ हैं (तरही ग़ज़ल 'राज ')

पुरख़तर इश्क की राहें हैं तो चलते क्यूँ हैं

चोट खाकर ही मुहब्बत में सँभलते क्यूँ हैं

 

प्यारा के दीप इन आँखों में यूँ जलते क्यूँ हैं

चाँदनी रात में अरमान मचलते क्यूँ हैं

 

रात में ख़्वाब इन आँखों पे हुकूमत करते

सुब्ह होते ही ये हालत बदलते क्यूँ हैं

 

बेवफाई से हुए  इश्क में जो दिल पत्थर

प्यार की आंच से ये फिर से पिघलते क्यूँ हैं

 

दूर से खूब लुभाते हैं ये तपते सहरा

तिश्नगी में ये मनाज़िर हमे छलते क्यूँ हैं

 

मसअले आम न चाहे ये बनाना आँखें

बेरहम  अश्क ये रुख्सार से ढलते क्यूँ हैं

 

दिल के बरखे पे लिखे दर्द भला कम हैं क्या

‘राज’ जज्बात कलम से ये निकलते क्यूँ हैं  

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 814

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 12, 2015 at 11:44am

आ० लक्ष्मण भैया,आप जैसे ग़ज़लकार से दाद पाना मेरे लिए बहुत मायने रखता है दिल से बहुत- बहुत आभार.  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 12, 2015 at 11:43am

प्रिय तनूजा जी,आप जैसे गंभीर रचनाकार से  दाद पाकर ग़ज़ल संतुष्ट होती है तहे दिल से आभार.  

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2015 at 11:39am

आ0 राजेश बहन , इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए कोटि कोटि बधाई .

Comment by Tanuja Upreti on August 12, 2015 at 11:33am

क्या खूब लिखती हैं मै'म हर शब्द  भावनाओं से भीगा हुआ I बहुत सुन्दर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 12, 2015 at 9:39am

आ० गिरिराज जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ. तहे दिल से आभार आपका |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 12, 2015 at 9:39am

सुब्ह होते ही ये हालत बदलते क्यूँ हैं---हालत के स्थान पर हालात पढ़ें (टंकण त्रुटी आ गई है )


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 12, 2015 at 8:30am

आदरणीया राजेश जी , मतला बहुत खूब कहा है  आपने , क्या बात है

पुरख़तर इश्क की राहें हैं तो चलते क्यूँ हैं

चोट खाकर ही मुहब्बत में सँभलते क्यूँ हैं   --  लाजवाब --  ग़ज़ल के लिये और इस मतले के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी हार्दिक आभार धन्यवाद , उचित सुझाव एवं सरसी छंद की प्रशंसा के लिए। १.... व्याकरण…"
1 minute ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द लोकतंत्र के रक्षक हम ही, देते हरदम वोट नेता ससुर की इक उधेड़बुन, कब हो लूट खसोट हम ना…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आपने प्रदत्त चित्र के मर्म को समझा और तदनुरूप आपने भाव को शाब्दिक भी…"
17 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
22 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
yesterday
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Dec 14
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service