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लघुकथा - टूटे फ़ूटे लोग –

लघुकथा -  टूटे फ़ूटे  लोग –

"महाराज, यह मेरा त्यागपत्र है, कृपया  स्वीकार कर लीजिये"!

" चित्रगुप्त जी, यह कैसी अनहोनी कर रहे हो!आपके बिना यह कार्य कौन देखेगा!हमारे पास  दूसरा कोई अनुभवी व्यक्ति भी नहीं है"!

"महाराज, अब यह काम करना मेरी सामर्थ्य  का नहीं है"!

"चित्रगुप्त जी,विस्तार से समझाइये ,आखिर मामला क्या है"!

"महाराज,पृथ्वी लोक से, विशेषकर भारतीय उप महाद्वीप से जो मृत लोग आ रहे हैं, उनके शरीर  विकृत अवस्था में आ रहे हैं!कुछ शरीर बिना चेहरे के भी आते हैं और कुछ के चेहरे छिन्न भिन्न  !उनकी पहचान करना मुश्किल हो रहा है ! ऐसे में उनके कर्मों का लेखा जोखा कैसे ढूढा जाय"!

"चित्रगुप्त जी,इसका कारण क्या है"!

"महाराज, कुछ अति महत्वाकांक्षी राजनीतिज्ञ अपने निज़ी स्वार्थ हेतु दंगे फ़साद, बम्ब  ब्लास्ट और फ़र्ज़ी दुर्घटनायें करवा देते हैं, जिसमें मरने वाले लोग  टूटे फ़ूटे और अंग भंग होते हैं"!

“आप  ऐसे धूर्त लोगों की लिस्ट बना कर  दीजिये, हमें  ऐसे लोगों की ही आवश्यकता है!ये लोग नर्क विभाग का कार्य बखूबी संभाल  लेंगे,हम शीघ्र ही इनको बुला लेते हैं  !

 मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by TEJ VEER SINGH on August 12, 2015 at 7:49pm

आदरणीय वीर मेहता जी,हार्दिक आभार, आपने अपना अमूल्य समय दिया!आप की बात से सहमत हूं, यही बात आदरणीय मिथिलेश जी ने भी कही है कि लघुकथा में कसावट की कमी है!मुझे भी अब अहसास हो रहा है!पुनः आभार!

Comment by TEJ VEER SINGH on August 12, 2015 at 7:45pm

आदरणीय मिथिलेश जी,हार्दिक आभार, आपने अपना अमूल्य समय दिया!किसी हद तक आपकी बात सत्य है पर इन बातों का जितना गहन अध्ययन किया जाय तो केवल निराशा ही हाथ आती है!ये सब किंबदंतियां हैं,इनका तार्किक मूल्यांकन में कोई स्थान नहीं है!यह लघुकथा भी कल्पना की उडान है!यथार्थ से कोई सरोकार नहीं!जिन बातों के प्रमाण नहीं होते हम उस पर जिरह नहीं कर सकते!सादर, क्षमा चाहूंगा!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 12, 2015 at 12:11pm

आदरणीय तेजवीर सिंह जी, बढ़िया कथानक लिया है इस प्रस्तुति पर बधाई 

किन्तु यह भी अवश्य है कि मृत्यु लोक से परलोक को केवल आत्माएं जाती है, माटी तो इधर ही छूट जाती है. यह अवधारणा ही अब तक मान्य है और सत्य भी. आपने क्षत-विक्षत शरीर को परलोक भेज दिया. यह अवश्य किया जा सकता है कि यमदूतों को इहलोक में शरीर पहचानने की समस्या को दिखाया जा सकता है. लघुकथा थोड़ी कसावट चाहती है. सादर 

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on August 11, 2015 at 10:49pm
आदः तेजवीर सिंह जी कथा का विषय बढ़िया है लेकिन प्रस्तुतिकरण न तो गम्भीर कथा का रूप ले सका और न ही व्यंगात्मक रूप मे कोई प्रभाव छोड़। ये मेरा निजी विचार है। बरहाल इस प्रयास के लिये सादर बधाई स्वीकार करे।

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