For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- हमारा दिल जलाकर आँख का काजल बनाती है।

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
हमारा दिल जलाकर आँख का काजल बनाती है।
बडी जालिम है' पलकों पर मे'री बादल बनाती है।

निगाहे गर्म वो उसकी मसीहा भी है' कातिल भी।
कभी मरहम लगाती है कभी घायल बनाती है।

महकता है चमन सारा तुम्हारे तन की' खुशबू से।
तुम्हारी ही नकल से शाखे गुल कोंपल बनाती है।

जहाँ सहरा बनाया है खुदा तेरे फरिश्तों ने।
वहाँ उस शख़्स की मौजूदगी जंगल बनाती है।

हवा तेरा बदन छूकर अगर छू ले किसी को फिर।
ते'रा आशिक बनाती है ते'रा कायल बनाती है।

मुझे सुनने में' आया हैं ते'री जाने जिगर 'राहुल'।
तुझे उल्फत नहीं करती फकत पागल बनाती है।

मौलिक व अप्रकाशित ।

Views: 948

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by maharshi tripathi on July 22, 2015 at 10:24pm

इस खूबसूरत गजल पर दाद कुबुलें आ. Rahul Dangi जी |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 22, 2015 at 9:12pm

आदरणीय राहुल भाई जी, बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद हाज़िर है.

Comment by Rahul Dangi Panchal on July 22, 2015 at 9:03pm
जनाब समर कबीर साहब आपकी टिप्पणी ने ग़ज़ल को पूर्ण कर दिया बहुत बहुत आभार आदरणीय
Comment by Rahul Dangi Panchal on July 22, 2015 at 9:02pm
शुक्रिया आदरणीय आनन्द जी
Comment by Samar kabeer on July 22, 2015 at 6:33pm
जनाब राहुल डांगी जी,आदाब, वाह वाह वाह,बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।
Comment by Er Anand Sagar Pandey on July 22, 2015 at 5:39pm
बहुत ही उम्दा राहुल जी l
मजा आ गया l
Comment by Rahul Dangi Panchal on July 22, 2015 at 12:22pm
आदरणीय मनोज भाई जी शुक्रिया । काफिया अल पर ठहराया है आगे गुनीजनों की राय का इन्तजार करते है
Comment by मनोज अहसास on July 22, 2015 at 12:09pm
सर
बहुत खूब
शानदार
बस एक जिज्ञासा है
के काफ़िया जंगल और कोपल उचित है या नहीं
थोडा समाधान कर दें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
15 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
17 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी प्रदत्त विषय पर आपने बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की है। इस प्रस्तुति हेतु…"
22 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, अति सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"गीत ____ सर्वप्रथम सिरजन अनुक्रम में, संसृति ने पृथ्वी पुष्पित की। रचना अनुपम,  धन्य धरा…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ पांडेय जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"वाह !  आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर आपने भावभीनी रचना प्रस्तुत की है.  हार्दिक बधाई…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ पर गीत जग में माँ से बढ़ कर प्यारा कोई नाम नही। उसकी सेवा जैसा जग में कोई काम नहीं। माँ की…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service