For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- हमारा दिल जलाकर आँख का काजल बनाती है।

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
हमारा दिल जलाकर आँख का काजल बनाती है।
बडी जालिम है' पलकों पर मे'री बादल बनाती है।

निगाहे गर्म वो उसकी मसीहा भी है' कातिल भी।
कभी मरहम लगाती है कभी घायल बनाती है।

महकता है चमन सारा तुम्हारे तन की' खुशबू से।
तुम्हारी ही नकल से शाखे गुल कोंपल बनाती है।

जहाँ सहरा बनाया है खुदा तेरे फरिश्तों ने।
वहाँ उस शख़्स की मौजूदगी जंगल बनाती है।

हवा तेरा बदन छूकर अगर छू ले किसी को फिर।
ते'रा आशिक बनाती है ते'रा कायल बनाती है।

मुझे सुनने में' आया हैं ते'री जाने जिगर 'राहुल'।
तुझे उल्फत नहीं करती फकत पागल बनाती है।

मौलिक व अप्रकाशित ।

Views: 950

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rahul Dangi Panchal on July 26, 2015 at 12:07am
आदरणीया कान्ता रॉय जी बहुत बहुत आभार
Comment by kanta roy on July 25, 2015 at 4:39pm
हमारा दिल जलाकर आँख का काजल बनाती है।
बडी जालिम है' पलकों पर मे'री बादल बनाती है........ वाह ! वाह ! क्या काजल बनाती है ..... बहुत ही लाजवाब लगी गजल आपकी । बधाई आदरणीय राहुल दाँगी जी
Comment by Rahul Dangi Panchal on July 25, 2015 at 11:04am
आदरणीय धर्मेन्द्र जी आप जैसे बडे रचनाकार के मुँह से वाह सुनकर रचना सफल हुई । सादर धन्यवाद
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 24, 2015 at 11:57am
वाह वाह, आदरणीय राहुल जी, दाद कुबूल करें
Comment by Rahul Dangi Panchal on July 23, 2015 at 2:51pm
आदरणीय गिरिराज सर शुक्रिया
Comment by Rahul Dangi Panchal on July 23, 2015 at 2:51pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी शुक्रिया

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 23, 2015 at 12:45pm

अच्छी गज़ल हुई है , आ. राहुल भाई आपको हार्दिक बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 23, 2015 at 10:59am

बहुत सुन्दर प्यारी ग़ज़ल हुई है राहुल जी दिल से बधाई लीजिये 

हवा तेरा बदन छूकर अगर छू ले किसी को फिर।
ते'रा आशिक बनाती है ते'रा कायल बनाती है।---वाह्ह्ह  बहुत शानदार शेर .

Comment by Rahul Dangi Panchal on July 22, 2015 at 10:40pm
आदरणीय महर्षि जी धन्यवाद
Comment by Rahul Dangi Panchal on July 22, 2015 at 10:40pm
आदरणीय मिथिलेश जी बहुत बहुत आभार

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
3 hours ago
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service