For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"चलो पापा, आज मैँ आप को शाम की सैर करवा लाती हूँ।" नन्ही तनु की बात सुनकर कई दिन से बिस्तर पर पड़े बीमार राज के चेहरे पर मुस्कान आ गयी।
दूर अस्त होते सूर्य की बिखरती लालिमा और शांत सुहानी शाम के साथ, बेटी के चेहरे पर बड़ो जैसा विश्वास राज को बहुत भला लग रहा था। अनायास तनु उसे लगभग खींचते हुये एक जगह ले गयी और अपनी प्यारी आवाज में बोली। "पापा पापा देखो, यही पर छोड़ गयी थी ना मुझको एक 'ऐंजल'! 'ममा' ने बताया है मुझे।"
और अचानक ही अतीत को याद कर राज की आँखे भीग गयी। "क्या हुआ पापा?" नन्ही तनु ने प्रश्न किया। "कुछ नही बेटी।" कहते हुये राज ने आँसु पोछ लिये। "क्या बताये उसे, समय आने पर जान ही जायेगी कि 'रियल ऐंजल' तो वह खुद है जो हम नि:संतान पति पत्नि के जीवन में बहार बनकर आयी थी। उसको छोड़ कर जाने वाली तो...........।"
बेटी के हाथ को मजबूती से थामे राज घर की ओर लौटने लगा, दूर कही दिन ढलने लगा था।

.
'विरेन्दर वीर मेहता' (मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 441

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 13, 2015 at 9:20am

वीरेन्द्र जी

बेहतरीन कथा . आख़िरी वाक्य न भी होता तो भी कथा पूर्ण होती .

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 12, 2015 at 9:43pm
आदरणीय मिथिलेश कुमार जी
कथा पर आपके शब्द आपकी प्रतिक्रिया सदा ही मेरा हौसला बढ़ाती रही है आपके इस स्नेह के लिये मैं दिल से आभारी हूँ। ( आपका ये कथन कि आखिरी में दिखाये ...... डाॅटस में एक और कथा छुपी है, एक दम सही है और उस कथा को लाना भी तय है देर सवेर ही सही।)
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 12, 2015 at 9:36pm
आदरणीय विनय कुमार जी कथा पर आपकी प्रोत्साहन देती प्रतिक्रिया के लिये दिल से आभार।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 12, 2015 at 9:35pm
आदरणीय प्रदीप कुमार जी कथा पर आपके हौसला देते शब्दो के लिये तहे दिल से आभार।
Comment by विनय कुमार on July 12, 2015 at 12:57am

बहुत सुन्दर और भावपूर्ण लघुकथा आदरणीय वीर मेहता जी । एंजेल तो वो लोग भी होते हैं जो ऐसे बच्चों को अपना लेते हैं और उनको माँ बाप की कमी महसूस नहीं करने देते । बधाई इस लघुकथा के लिए ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 12, 2015 at 12:20am

आदरणीय वीरेंदर जी बहुत ही मार्मिक और दिल को छू लेने वाली लघुकथा हुई है. इस शानदार और सफल लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई 

//उसको छोड़ कर जाने वाली तो...........// के ........ डॉट्स में एक और बड़ी कथा छुपी हुई है ...

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 11, 2015 at 11:34am

बहुत ही बेहतर कथा , जितनी भी बधाई दी जाए कम है . 

सादर बधाई. आदरणीय मेहता जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
11 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
20 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
20 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service