For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122 / 2122 / 212

 

आजकल जो मित्रवत व्यवहार है

एक धोखा है नया व्यापार है

 

सर्जना भी अब कहाँ मौलिक रही

जो पढ़ेंगे आप वो साभार है

 

वो मनुजता मारकर बैठे है मित्र

आपका रोना यहाँ बेकार है

 

किस तरह संवेदनाएं जुड़ सके

आज के सम्बन्ध तो बेतार है

 

देश में अदभुत व्यवस्था रच रहे

स्वप्न भी उनका कहाँ साकार है

 

पुष्प की वर्षा हुई तो जान लो

एक कंटक भी वहां तैयार है

 

हम गगन के स्वप्न में खोए रहे

और खिसका जा रहा आधार है

 

एक निर्धन को मनुज माना, चलो

आपका सबसे बड़ा उपकार है

 

जब मिले हैं बस उसे पत्थर मिले

वृक्ष शायद वह बहुत फलदार है

 

------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
------------------------------------------------------

Views: 733

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sachin Dev on July 9, 2015 at 2:02pm

शानदार गजल हुई आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी ............

//

किस तरह संवेदनाएं जुड़ सके

आज के सम्बन्ध तो बेतार है //
संवेदनाएं जुड़ सके के स्थान पर सकें होना चाहिए शायद ....... बाकी आज के सम्बन्ध मैं धर्मेन्द्र जी के बताये अनुसार आपने सुधार कर ही लिए है .... सादर .....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 9, 2015 at 1:38pm

आदरणीया राजेश दीदी, यह प्रयास आपको पसंद आया, लिखना सार्थक हो गया. आपकी स्नेहपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.

बहुत दिनों बाद ब्लॉग पोस्ट कर रहा हूँ. इन दिनों अध्ययन, पठन और पाठक के रूप में अभ्यासरत हूँ. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 9, 2015 at 1:34pm

आदरणीय गिरिराज सर आपको प्रयास पसंद आया जानकार मन को संतोष हुआ. सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आभार 

आपका मार्गदर्शन बहुत अच्छा है सही कहा कोई शब्द का अर्थ विस्तार अधिक है.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 9, 2015 at 9:57am

किस तरह संवेदनाएं जुड़ सके

आज के सम्बन्ध तो बेतार है

 वाह्ह्ह्ह वाह्ह  बहुत सुन्दर प्रस्तुति हर युग्म शानदार  दिल से बधाई लीजिये मिथिलेश भैया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 9, 2015 at 5:18am

आदरणीय  मिथिलेश भाई , लाजवाब गज़ल हुई है , सभी अश आर बेहतरीन हैं । बधाई बधाई बधाई ।

एक कंटक भी वहां तैयार है    को ऐसा कहें तो -- कोई कांटा भी वहाँ तैयार है  ( एक - संख्या बताना मुझे कम अच्छा लगा है )

  

Comment by विनय कुमार on July 9, 2015 at 12:54am

हा , हा , ये भी खूब कहा आपने आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी । जरूर प्रयास करूँगा इस पर और आप की टिप्पणी भी चाहूँगा प्रयास पर । वैसे ग़ज़ल लिखना बहुत कठिन कार्य है और मैं तो इसमें बिलकुल ही अनाड़ी हूँ । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 9, 2015 at 12:35am
आदरणीय विनय जी
सराहना हेतु आभार।
आपको तुकांत रचते देखकर बहुत ख़ुशी हो रही है। ये बह्र तो आपने खूब पकड़ी है। इसी बह्र में एक ग़ज़ल आपकी भी आ जाए तो वाह वाह तय जानिए।
Comment by विनय कुमार on July 9, 2015 at 12:24am

// आप जैसा व्यक्ति मिलना है कठिन
आप तो साहित्य के सरदार हैं // , बहुत उम्दा , हर शेर बेहतरीन है , आखिरी शेर तो बस क्या कहने आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी । वाह वाह , बधाई इस रचना के लिए..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 9, 2015 at 12:08am
कृपया मिसरे को यूं पढ़ने का कष्ट करें-

किस तरह संवेदनाएँ जुड़ सके
आज का सम्बन्ध तो बेतार है

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 9, 2015 at 12:06am
आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी आभार आपका सराहना हेतु।
आपने सही कहा 'के' के स्थान पर 'का' होगा। मैंने प्रिव्यू के समय एडिट किया था लेकिन पोस्ट नहीं हो पाया दोबारा पोस्ट करते समय भूल गया। त्रुटि पर ध्यान दिलाने के लिए आभार।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
26 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान…"
30 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक भाई , प्रवाहमय सुन्दर छंद रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई "
50 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय बागपतवी  भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक  आभार "
53 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ, गुणीजनों की इस्लाह से ग़ज़ल…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
11 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"   आदरणीय सुशील सरना जी सादर, लक्ष्य विषय लेकर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई…"
11 hours ago

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service