For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तरही ग़ज़ल   

2122  1122  1122 22   

ये तबाही भरे मंजर नहीं देखे जाते

आँखों में गम के समंदर नहीं देखे जाते

फलसफा इश्क का मैं आज तुम्हे समझा दूं

इश्क में रहजन-ओ –रहवर नहीं देखे जाते

एक मुफलिस की ग़ज़ल सुनके बज्म झूम उठी

रुतवे महफ़िल में सुखनवर नहीं देखे जाते

इक सदी होने को आयी हमें आज़ाद हुए

मुझसे  हैं लोग जो बेघर नहीं देखे जाते

रिंद गर सच्चा तू होता तो खुद समझ लेता

खाली क्यूँ मुझसे ये सागर नहीं देखे जाते

खेलती थी जो मेरे साथ कभी बचपन में

गुल सी जब खिल गयी तेवर नहीं देखे जाते

शक्ल में गुल की दिया आज तुम्हे ये दिल है

तुहफे में गुल हो या जेवर नहीं देखे जाते

अहदे नौ में तो कबूतर को सुकूँ खूब मिला

देते सन्देश कबूतर नहीं देखे जाते

अपनी महबूबा का सौदा भी जो कर सकते हैं

ऐसे नामर्द ये दिलवर नहीं देखे जाते

मन को समझा लो हिदायत ये तुम्हे है मेरी

गुल हसीं, हाथ से छूकर नहीं देखे जाते

दूध, तिल, दीप पुये सब हैं नदारत अब तो

केक अब कटते ये घर घर नहीं देखे जाते

सीने में दिल था तो पत्थर को सर झुकाता था 

दिल जो पत्थर हुआ  पत्थर नहीं देखे जाते

बांध, पुल और सड़क देखो जहाँ बनने हैं

वास्ते इनके ये दफ्तर नहीं देखे जाते

खाद के नाम पे खेतों को बिषैला है किया

खेत अब अपने ये बंजर नहीं देखे जाते

हौसलों से ही ग़ज़ल जिनके यहाँ फूली फली

अब वो उस्ताद ही अक्सर नहीं देखे जाते

 

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 819

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 3, 2015 at 12:32am

आदरणीय आशुतोष जी 

बढ़िया तरही ग़ज़ल हुई है 

शेर दर शेर दाद हाज़िर है 

Comment by maharshi tripathi on July 2, 2015 at 11:33pm

इक सदी होने को आयी हमें आज़ाद हुए

मुझसे  हैं लोग जो बेघर नहीं देखे जाते----कमाल 

अपनी महबूबा का सौदा भी जो कर सकते हैं

ऐसे नामर्द ये दिलवर नहीं देखे जाते------बेतरीन शेर |,,,सुन्दर गजल पर बधाई आपको आ.|

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 2, 2015 at 3:20pm

प्रिय कृष्णा जी रचना को आपका स्नेह मिला  यह मेरे लिए उत्साहवर्धक है ..हार्दिक धन्यवाद के साथ सादर 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on July 2, 2015 at 1:43pm

फलसफा इश्क का मैं आज तुम्हे समझा दूं

इश्क में रहजन-ओ –रहवर नहीं देखे जाते             बहुत ही लाजवाब गिरह लगाई है सर!गजब!

एक मुफलिस की ग़ज़ल सुनके बज्म झूम उठी

रुतवे महफ़िल में सुखनवर नहीं देखे जाते                 बहुत ही उम्दा! क्या कहने!

खाद के नाम पे खेतों को बिषैला है किया

खेत अब अपने ये बंजर नहीं देखे जाते                   इस शेर पे दिल कुर्बान! क्या कहने बेहतरीन!

बहुत सी बेहतरीन गज़ल हुयी आ० आशुतोष सर! तहेदिल से दाद प्रेषित है!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 2, 2015 at 1:24pm

आदरणीय पारी जी रचना पर आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया से मुझे बहुत उत्साह मिला ..उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 2, 2015 at 1:23pm

आदरणीय राहुल जी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 

Comment by Pari M Shlok on July 2, 2015 at 9:13am
वाह ज़वाब नहीं
इक सदी होने को आयी हमें आज़ाद हुए
मुझसे हैं लोग जो बेघर नहीं देखे जाते

खाद के नाम पे खेतों को बिषैला है किया
खेत अब अपने ये बंजर नहीं देखे जाते
Comment by Rahul Dangi Panchal on July 2, 2015 at 7:52am
बहुत खूब और आखिरी शे'र तो बहुत सुन्दर ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service