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रूतबा मंत्रालय का ( लघुकथा )

"समीर जी , क्या रूतबा है भई आपका ...!!! जहाँ भी जाते हो ..यार , छा जाते हो ! " --- अजय को गर्व था अपने दोस्त पर । समीर का जलवा तो उसके हर अंदाज़ से ही झलकता था। उसकी बातों से ही मंत्रालय में उसकी पद प्रतिष्ठा का अनुमान चल जाता है। जब साले साहब को मंत्रालय में जरूरी काम करवाने की जरूरत आन पडी तो अजय बडे गर्वित हो साले साहब के साथ मंत्रालय की ओर निकल लिए ।आजतक मंत्रालय के दर्शन भी नही किये थे उसने । दोस्त की मेहरबानी से यहाँ तक आने का अवसर भी प्राप्त हुआ । मन गदगद हुआ जा रहा था । मंत्रालय के अंदर प्रवेश करते ही सामने सुरक्षाकर्मी की पैनी नजर से अकबकाया हुआ अजय अपने आप को संभालता हुआ समीर जी का पता पूछा । सुरक्षाकर्मी का युँ उपेक्षित नजरों से उसे देखना अच्छा नही लगा जरा भी ....दोस्त को जरूर सुरक्षाकर्मियों के इस व्यवहार के बारे में बतायेगा ।

मन में गंथन मंथन करता हुआ साले साहब के साथ , जब निश्चित फ्लोर वे पहुँचे तो समीर जी की पूर्णरूपेण व्यक्तित्व से सामना हुआ।सामने की केबिन में समीर जी चाय का ट्रे हाथ में संभाले हुए अपने अधिकारी द्वारा निकम्मेपन की उपाधि से नवाज़े जा रहे थे ।



कान्ता राॅय
भोपाल
मौलिक और अप्रकाशित

Views: 684

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Comment by kanta roy on May 27, 2015 at 6:11am
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , कथा के शिल्प में सुधार की अभी गुंजाइश बाकी है । आपने मार्गदर्शन युक्त प्रतिक्रिया देकर मेरा लेखन मार्ग प्रशस्त करने हेतु नमन आपको ।
Comment by kanta roy on May 27, 2015 at 6:08am
आदरणीय मोहन सेठी इंतजार जी बिलकुल सही कहा आपने कि रिश्वत बनाने का खेल ही इनके झूठी शान को बढावा देता है । आभार
Comment by kanta roy on May 27, 2015 at 6:05am
आभार आपको आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी
Comment by kanta roy on May 27, 2015 at 6:04am
आभार आपको आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी
Comment by kanta roy on May 27, 2015 at 6:03am
आभार आपको आदरणीया अन्नपूर्णा बाजपेयी जी
Comment by kanta roy on May 27, 2015 at 6:02am
आभार आपको आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी
Comment by kanta roy on May 27, 2015 at 6:01am
आभार आदरणीय अमन कुमार जी कथा पसंदगी के लिये ।
Comment by kanta roy on May 27, 2015 at 6:00am
आभार आपको आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 27, 2015 at 12:32am

ग़ज़ब ! अचम्भित कर दिया ! बहुत खूब !!

अब आप प्रस्तुतीकरण पर ध्यान दें आदरणीया. अर्थात अपनी प्रस्तुति को पढ़ जाइये. देखिये कथा के वाक्यों में क्या सुधार हो सकता है.

सादर शुभकामनाएँ

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on May 16, 2015 at 4:30pm

सटीक व्यंग ....आज कल के ये कर्मचारी भी रिश्वत का पैसा बना लेते हैं ..तो बाहर रुतबा दिखाते ही हैं .... पिछले दिनों कोई ऐसा ही व्यक्ति समाचार में था जिसकी करोड़ो की प्रापर्टी निकली थी ....प्रभावी कथा ..बधाई 

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