यूँ तो दिखते ,
 कितने ही चेहरे ,
 मिलते-जुलते इंसानोँ से ।
 पर , जब उनकी
 फितरत देखी,
 तो लगी हैवानोँ सी !!
 करते हैँ शर्मसार ,
 इंसानियत को ।
 देख कर इनकी करतूतेँ ,
 सवाल करते हैँ जानवर भी ,
 कि क्योँ हैँ हम बदनाम !
 जब कि इतना ज्यादा ,
 गिर चुका है इंसान ।
 खुदा ने उसे ज़हानत दी ,
 कुछ भी करने की ताकत दी ,
 फिर भी वह ,इतना गिर गया ?
 कि लाश का कफ़न भी ,
 नोँच कर ले गया !
 घायल को देख कर ,
 नहीँ पसीजा ,
 उसका कलेजा ।
 हाँ ..... उसके गहने और दौलत ,
 लूट लिये सबसे पहले !
 उफ़ ....अरे कोई ...
 लाओ ढूँढ कर ,
 कहाँ खो गयी
 इंसानियत ?
 और सबके ऊपर
 हो गयी हावी,
 हैवानियत !
 जब मिल जायेगा कोई इंसान ,
 तो नवाजा जायेगा उसको,
 ख़ैर मक़दम से ।
 और बतौर यादगार ,
 उसे तोहफे मेँ दी जायेगी ,
 इंसान की तसवीर ।
 जिससे आने वाले कल मेँ ,
 लोग जानें,
 कि दुनिया मेँ कभी,
 इंसानियत नाम की चीज़
 भी हुआ करती थी ।।
 
 
 ( मौलिक एवम् अप्रकाशित )
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अति उत्तम रचना ....आज के मानव को बयाँ करती रचना
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