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भविष्य (लघुकथा)

"बेटा जी आज दूरबीन से इतनी देर से आसमान में क्या ढूंढ रहे हो।"
"पापा जिस तेजी से प्रदूषण फैल रहा है, जल्दी ही पृथ्वी पर प्रलय आ सकती है। इसलिए मैं यह देख रही थी कि क्या कोई और ग्रह हमारी पृथ्वी जैसा है जहाँ हम भविष्य में रह सके।"

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by neha agarwal on May 1, 2015 at 3:48pm
सादर धन्यवाद आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 27, 2015 at 5:01am

लघुकथा पर इस प्रयास के लिए हार्दिक शभकामनाएँ..

Comment by neha agarwal on April 27, 2015 at 1:54am
धन्यवाद राजेश कुमारी जी यह मेरी पहली ही रचना है इस मंच पर
Comment by neha agarwal on April 27, 2015 at 1:52am
धन्यवाद krishna mishra ji
Comment by neha agarwal on April 27, 2015 at 1:51am
सादर धन्यवाद जितेन्द्र पस्टारिया जी।
Comment by neha agarwal on April 27, 2015 at 1:50am
बहुत बहुत आभार आपका कथा को पसंद करने के लिए आदरणीय kewal prasad जी
Comment by neha agarwal on April 21, 2015 at 7:49am

धन्यवाद  डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 19, 2015 at 8:35am

ताकि फिर उसे भी पृथ्वी की तरह प्रदूषित कर सकें और फिर नया गृह तलाश करें ....वाह्ह्ह रे स्वार्थी मानव !! क्या जबरदस्त विषय पर लघुकथा लिखी है आपने मजा आ गया नेहा जी ,शयद पहली कोई रचना पढ़ रही हूँ आपकी ,,मस्त है हार्दिक बधाई आपको |

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 17, 2015 at 10:34pm

बेहतरीन लघुकथा पर बधाई आदरणीया नेहा जी!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 17, 2015 at 8:31pm

एक अलग ही विषय पर बेहतरीन लघुकथा, आदरणीया नेहा जी. बधाई स्वीकारें

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