For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सम्मान : लघुकथा

"कुछ सिखाओं अपनी माँ को | शहर में रहते पच्चीसों साल हो गये पर रही गंवार की गंवार |"
" बड़े साहब कितनी बार कहें बैठ जाओ पर ये बैठी नहीं |"
"कइसे बैठती जी, वो 'पैताने' बैठने को कहत रहा | "...सविता मिश्रा

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 921

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by savitamishra on April 16, 2015 at 5:34pm

आदरणीय गोपाल चाचाजी आप का कहना बिल्कुल वाजिब हैं | और हम बखूबी समझ रहें हैं चाचाजी | पर बुजुर्ग का मान रखने के चक्कर में युवा साहब ने बैठने को कहा , पर गाँव के परिवेश से आई बुजुर्ग महिला को गंवारा न हुआ बैठना |.....सादर नमस्ते |

अब यदि इस कथा को बदलना भी किसी तरह चाहे तो बदलने से फिर ख़त्म हो जायेगी | कुछ नई गढ़नी पड़ेगी फिर तो | ..यदि सुझाव आप दें सकें तो हमें ख़ुशी होंगी |...हम बदलने में अक्षम हैं इसे |

जहाँ तक हमारा विचार है यदि चारपाई या तख़्त पर कोई अधलेटा सा भी है तो चाहे कुर्सी भी आफर की जाए पैर की तरफ लोग बैठना गंवारा नहीं करते |

Comment by savitamishra on April 16, 2015 at 5:24pm

कई जनों से सुनें हैं जिसके द्वारा बोला जाय वैसे ही भाषा लिखने की कोशिश होनी चाहिए ..वैसे ना जाने क्यों हम इत्तेफ़ाक नहीं रखते ...पर हो सकता है सब अपनी ही भाषा में कहने पर वह और भी नियमों से हट जाये ..वैसे भी हमारी कथा नियमों के विरुद्ध हो जाती हैं
आदरणीय डाक्टर विजय भैया सादर नमस्ते ...
पैताने बैठने को कहा जिससे गाँव की परिवेश में रहने वाली बुजुर्ग महिला को जचा नहीं | अतः नहीं बैठीं..सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 16, 2015 at 12:10pm

आ० सविता जी

आ० राजेश कुमारी जी का कथन अपने स्थान पढ़ाई और मेरा सन्दर्भ दूसरा है . माँ जी किसी घरवाले के साथ बैठने नहीं जा रही हैं . वह साहब  के पास बैठने हेतु प्रस्तावित है . साहब एक महिला को कुर्सी आफर करे  यह तो ठीक है  पर वह र्पैताने या सिरहाने बैठने को कहे यह बात गले से नहीं उतरती  i साहेब के बिस्तर पर माँ  के बैठने  का क्या औचित्य है . सम्भवतः मेरा मंतव्य  आप  समझ गयी होंगी . सादर .

Comment by Shyam Narain Verma on April 16, 2015 at 11:09am

इस अच्छी लघु कथा के लिए बधाई

Comment by aman kumar on April 16, 2015 at 9:00am

संस्कार नही वर्तमान मे लाभ और लोभ प्रमुख हो गए  है ......संस्कार  असमंजस की मनोदशा का अच्छा प्रस्तुतीकरण !

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 16, 2015 at 6:34am
आदरणीय सुश्री सविता मिश्रा जी , प्रश्न सिरहाने - पैताने का नहीं , दोनों ही शब्द हिंदी भाषा-भाषी भली-भांति जानते हैं , कठिनाई संवाद को समझने में हो रही है ,वह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है , आख़िरी पंक्ति कुछ अवधी में होने से कुछ और अस्पष्ट कर रही है।
सादर।
Comment by Hari Prakash Dubey on April 15, 2015 at 11:50pm

आदरणीया सविता जी , 'पैताने' आंचलिक  शब्द है , या तो आप ( कोष्ठक) में इसका  अर्थ  लिख देतीं तो बात अधिक  स्पष्ट  हो जाती , जैसे  कई जगह इसे  गोडवारी  भी कहा जाता है , इसीलिए ये स्पष्ट नहीं  हो पाया ! 

परबत के पैताने पहुँचे परबत के सिरहाने भी
कहाँ-कहाँ तक ले जाते हैं अक्सर कई बहाने भी......ये 
रामकुमार कृषक जी की कविता है , आनंद लीजिये , खुश रहिये ! सादर 

Comment by rajkumarahuja on April 15, 2015 at 11:45pm

माननीया सविता जी , सुन्दर अभिव्यक्ती ! कभी ये संस्कार संयुक्त परिवारों में बच्चों को घुट्टी में मिलते थे ! कैसी विडंबना है की आज प्रश्न खड़ा होता है की पैताने बैठने में क्या हर्ज़ होता ? सिरहाने-पैताने बैठने की समझ अथवा प्रातःकाल अपने से बड़ों का चरण-स्पर्श करने जैसी छोटी-छोटी बातें कहानी के पन्नो में सिमट कर रह गई हैं ! इन्हें पंक्तियों में उकेरने के लिए साधुवाद ....   

Comment by savitamishra on April 15, 2015 at 11:33pm

शीर्षक समझ नहीं आ रहा था दी तुरंत ..सम्मान ही सुझा उस समय
इन्तजार भी नहीं करें जैसे लिखी दोबार पढ़ी और यहाँ डाल दी ....ये प्रभाकर भैया कि माल्यार्पण वाली (गहरी खाई ) पढने के बाद अचानक दिमाग में आ गयी

Comment by savitamishra on April 15, 2015 at 11:28pm

आदरणीया राजेश दी सादर नमस्ते ..दिल से आभार आपका दी मेरे मन को बखूबी पढ़ा और बोला आपने ..आभार दिल से

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
1 minute ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
14 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
16 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service