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बिटिया थोड़ी छोटी हो जा

बिटिया तू थोड़ी छोटी हो जा

नकचढ़ी थोड़ी सरफिरी हो जा

 

अब किसी बात की फरमाइश नहीं होती

गालों पे चुम्बन की बारिश नहीं होती

नयी नयी ड्रेस की सिफारिश नहीं होती

नयी डिश के लिए मस्कापालिश नहीं होती

मूवी जाने के लिए साजिश नहीं होती

माँ को पटाने की अब कोशिश नहीं होती

 

थोड़ी सी फिर से लहरी हो जा

नकचढ़ी थोड़ी सरफिरी हो जा

बिटिया तू थोड़ी छोटी हो जा

 

मीटिंग के बहाने ऑफिस जल्दी जाना

रात को देर से आना फिर जल्दी सोना  

मन के खालीपन को हंसी में उडाना

बढती हुई उमर को मेकअप में छिपाना

पापा की यादों को तकिये में बहाना

नहीं अच्छा लगता तेरा यूँ बड़ा होना

 

इक बार फिर छोटी परी हो जा

नकचढ़ी थोड़ी सरफिरी हो जा

बिटिया तू थोड़ी छोटी हो जा 

निधि 

मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Shyam Narain Verma on April 9, 2015 at 11:11am
वाह ! बहुत खूब | सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 9, 2015 at 9:27am

बहुत प्यारी रचना निधि जी,दिल को छू गई दिल से बहुत- बहुत बधाई आपको . 

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 9, 2015 at 5:39am
भावनाओं से ओतप्रोत बहुत ही सुन्दर कविता आदरणीय सुश्री निधि अग्रवाल जी, बधाई , प्रसंगत: , लोग जैसे जैसे गैरजिम्मेदाराना हो रहे हैं बेटियां वैसे वैसे अधिक जिम्मेदाराना हो रही हैं , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 9, 2015 at 12:27am

इस सुन्दर रचना पर आपको हार्दिक बधाई आदरणीया निधि जी 

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