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उठने लगा है दिल से मेरे ये सवाल क्यों- ग़ज़ल

221 2121 1221 212

उठने लगा है दिल से मेरे ये सवाल क्यों

इस तंगदिल जहाँ से करूँ अर्ज़े हाल क्यों

 

तुझसे रही न कोई शनासाई ऐ हयात

फिर बार-बार आये तेरा ही खयाल क्यों

 

हैं अश्क़बार और भी इस बज़्म में कई

ऐ दोस्त ये बता कि मेरी ही मिसाल क्यों

 

आयेंगे और लम्हे अभी तो बहार के

आखिर तुम्हें है शाखे शजर ये मलाल क्यों

 

कैसे बताये कोई मुकद्दर किसी का क्या

कल जो खिला चमन में वो अब पायमाल क्यों

 

जिनकी वफा का बोझ लिये चल रहा था मैं

उनको पता नहीं मेरा जीना मुहाल क्यों

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Dr. Vijai Shanker on April 4, 2015 at 6:28pm
जिनकी वफा का बोझ लिये चल रहा था मैं
उनको पता नहीं मेरा जीना मुहाल क्यों
बहुत खूब, सुन्दर , बधाई , आदरणीय शिज्जु शकूर जी, सादर।
Comment by Neeraj Neer on April 4, 2015 at 6:14pm

वाह क्या खूब ... 

तुझसे रही न कोई शनासाई ऐ हयात

फिर बार-बार आये तेरा ही खयाल क्यों ..... बहुत खूब ... 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 4, 2015 at 6:06pm

आ० शिज्जू भाई

निस्शब्द हूँ . क्या गजल है . हर शेर एक मोती है और गजल मोती की माला . सादर .

Comment by Nirmal Nadeem on April 4, 2015 at 4:06pm

उठने लगा है दिल से मेरे ये सवाल क्यों

इस तंगदिल जहाँ से करूँ अर्ज़े हाल क्यों

 

तुझसे रही न कोई शनासाई ऐ हयात

फिर बार-बार आये तेरा ही खयाल क्यों

 

हैं अश्क़बार और भी इस बज़्म में कई

ऐ दोस्त ये बता कि मेरी ही मिसाल क्यों

 

आयेंगे और लम्हे अभी तो बहार के

आखिर तुम्हें है शाखे शजर ये मलाल क्यों

 

कैसे बताये कोई मुकद्दर किसी का क्या

कल जो खिला चमन में वो अब पायमाल क्यों

behad umda waaaaaaaaaaaaaaaaaah......mubark ho. daad hazir

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