For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तरही ग़ज़ल....-महिमा श्री

1.बरसों के बाद खुद को यूँ पहचान तो गया

 सीने में दफ्न इश्क जुनूं जान तो गया

2.बीती तमाम उम्र तेरी  आरज़ू में बस

 चाहत भरा सफ़र हो ये अरमान तो गया

3.हमको कहाँ खबर थी कि दिल हार जाएगें

  छो़ड़ो चलो कि दिल तेरे कुर्बान तो गया

4.मांगा खुदा से जिसको था सजदों में बारहा

 मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया

5. हमसे न हो सके थे जमाने के चोंचले

सब खुश हुए कि दौड़ से नादान तो गया

यह भी कि------------

6. बेशक ज़मीर बेच के कुर्सी बचाई है

 हांथों से उसके आज लो ईमान तो गया

मौलिक एवं अप्रकाशित

 

Views: 687

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by MAHIMA SHREE on April 2, 2015 at 2:55pm

ग़जल पर आपकी उपस्तिथि हर्ष कारक है आ.जवाहर सर... सराहने के लिए बहुत बहुत आभार

Comment by MAHIMA SHREE on April 2, 2015 at 2:53pm

सराहने के लिए बहुत-2 आभार आ. जितेन्द्र जी 

Comment by MAHIMA SHREE on April 2, 2015 at 2:52pm

आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी ..ही एक्स्ट्रा आ गया था मैंनें हटा दिया है..ध्यानाकर्षण के लिए धन्यवाद

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 2, 2015 at 9:35am

खूबसूरत गजल कहने के सिवा ज्यादा कुछ कह नहीं सकता ..हाँ अंतिम पक्तियां 

बेशक ज़मीर बेच के कुर्सी बचाई है

 हांथों से उसके आज लो ईमान तो गया  ...ज्यादा समझ आयी है ...दरअसल मैं गजल की बारीकियों से बिलकुल अंजान हूँ ...सोचता हूँ लिखने का प्रयास करूं और इसी मंच से लोगों से सीखूं...सादर महिमा बहन! 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 2, 2015 at 9:28am

हमसे न हो सके थे जमाने के चोंचले

सब खुश हुए कि दौड़ से नादान तो गया.....बहुत खूब. सबसे पसंदीदा अशआर

बेशक ज़मीर बेच के कुर्सी बचाई है

हांथों से उसके आज लो ईमान तो गया.......वाह! आजकल ईमान और जमीर बस नाम के ही हैं.

इस बेहतरीन गजल पर आपको बधाई ,आदरणीया महिमा जी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 1, 2015 at 11:35pm

आदरणीया महिमा जी बेहतरीन तरही ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं 

बीती तमाम उम्र तेरी ही आरज़ू में बस......... बह्र में ही पर पुनः विचार कीजियेगा. 

सादर 

Comment by MAHIMA SHREE on April 1, 2015 at 9:27pm

 ग़ज़ल पसंद करने के लिए..आपका बहुत बहुत आभार आ. वंदना जी..

   //चौथे शेर के  मिसरा ऊला में बारहा शब्द दोष उत्पन्न कर रहा है //

 ध्यानाकर्षण के लिए आभारी हूँ   देखती हूँ... सादर

Comment by MAHIMA SHREE on April 1, 2015 at 9:22pm

सराहने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया आ. गोपाल नारायण  जी,सादर

Comment by MAHIMA SHREE on April 1, 2015 at 9:21pm

आपका हार्दिक आभार आ. विजय शंकर जी..सादर

Comment by MAHIMA SHREE on April 1, 2015 at 9:20pm

 ग़ज़ल पर समय देने और सराहने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया आ. सुशील सरना जी,सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service