For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - तितलियाँ परीशाँ हैं ( गिरिराज भंडारी )

212    1222         212      1222

क्या हुआ यहाँ पर कल , क्यूँ उदास मौसम है

तितलियाँ परीशाँ हैं , क्यूँ गुलों में भी ग़म है

 

कितनी प्यारी लगतीं हैं , ये गुलाब की कलियाँ

और बर्गे गुल में वो , सो रहा जो शबनम है 

 

अपनी क़िस्मतों मे तो , सिर्फ ये सराब आये 

क़िस्मतों में कुछ के ही, सिर्फ़ आबे जम जम है

 

जगमगाती खुशियों की , नीव कह रही है ये  

कुछ घरों में तारीक़ी , कुछ घरों में मातम है

 

आइने के गावों में ,पत्थरों का मजमा क्यूँ

बेसदा सवाल ऐसा , फिर से दिल में कायम है

 

कोई रो गया है क्या , आज शब-ए- सह्रा में

बेकली है क्यूँ तारी  , क्यूँ ज़मीन नम नम है 

 

यादों के सहारे यूँ , ज़िन्दगी नहीं कटती

फिर भी याद आई तो , दर्दे दिल ज़रा कम है

****************************************** 

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

Views: 909

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 17, 2015 at 9:49pm

सभी अशआर खुबसूरत लगें, अंतिम शेर अधिक पसंद आया, एक अच्छी ग़ज़ल पर बधाई आदरणीय गिरिराज भाई साहब.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 17, 2015 at 9:34pm

आदरणीय गुमनाम भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 17, 2015 at 9:33pm

आदरणीय हरि प्रकाश भाई , हौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 17, 2015 at 9:32pm

आदरणीय विजय भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 17, 2015 at 9:32pm

आदरणीय दिनेश भाई , आप जैसे गज़ल कार से सराहना पा के ग़ज़ल कहना सार्थक हुआ , आपका आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 17, 2015 at 9:30pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , आपकी स्नेहिल सराहना के लिये आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 17, 2015 at 9:30pm

आदरणीय निर्मल नदीम भाई , हौसला अफज़ाई का दिली शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 17, 2015 at 9:29pm

आदरणीय श्याम नारायन भाई , आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 17, 2015 at 9:28pm

आदरणीया निधि जी , आपका बहुत शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 17, 2015 at 9:28pm

आदरणीय श्याम भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
3 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
17 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service