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रख के गिरवी अपनी जाँ तुम्हें फिर माँग लूँगा मैं

बनके अश्रु जब टपकेगी दिल की बेचैनी
मोहब्बत है तुझे हमसे फिर मान लूँगा मैं |

बयां कर न कर पढ़ के चेहरे की हालत
जरुरत है तुझे मेरी फिर जान लूँगा मैं |


जाके मिल गयी तुम गर सितारों में
देख चमकने की अदा फिर पहचान लूँगा मैं |

पकड़ हाथों में हाथ बनाके दिल की रानी
जहाँ कोई न हो दुश्मन फिर जहान लूँगा मैं |

सुनहरे केश और आँखों पे पलकों का ज़ेबा
बनाके तुझे भेजा उसका फिर एहसान लूँगा मैं |

बुलावा आ गया तेरा गर मुझ से पहले
रख के गिरवी अपनी जाँ तुम्हें फिर माँग लूँगा मैं |||

**********************************
"मौलिक व अप्रकाशित "

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Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 28, 2015 at 9:15am

बनके अश्रु जब टपकेगी दिल की बेचैनी
मोहब्बत है तुझे हमसे फिर मान लूँगा मैं |

सुन्दर maharshi भाई!!बधाई!

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 28, 2015 at 12:50am
बुलावा आ गया तेरा गर मुझ से पहले
रख के गिरवी अपनी जाँ तुम्हें फिर माँग लूँगा मैं |||
आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी , बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति है। बहुत बहुत बधाइयां , सादर।
Comment by maharshi tripathi on February 27, 2015 at 4:31pm

आ. गोपाल नारायण जी आपको गजल पसंद आयी .आपका आभार | 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 27, 2015 at 1:07pm

प्रिय महर्षि

आपने अच्छी गजल कही i आख़िरी शेर ने तो गजल में जान ही फूंक दी i सस्नेह i

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