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लाल पानी (लघुकथा)

"तो बीबी जी कोनू जगह पक्की हुई सूट की?"
"जी, सरपंच जी।
वो जो बड़ के पेड़ के पास नदी है न, बस वहीँ नीतू के डूबने का सीन शूट करेंगे।"
"बीबी जी, बौराय गई हो का? हम तोहरा के पहले ही बतावत रहे अऊर एक बार फिर बताय देब, जब-जब उ नदी का पानी लाल होई जाई उहा मौजूद हर आदमी-औरत की मौत हुई जाई। सराप है उ नदी पे।"
"आप आज भी इन सब बातोँ पर यकीन करते हैँ?"
"तुम सहरी लोगन का यही तो प्राब्लम है कोनू की कछु नाही सुनत।"
अगले दिन सीन शूट होने लगा। अचानक नदी का पानी लाल हो गया।
सेट पर अफरा-तफरी मच गई और सब वहाँ से जान बचाने भागे।
और अगले दिन कैमरे मेँ आदमखोर जानवरोँ का जो सच कैद हुआ था उसने नदी के श्राप को हमेशा के लिए मिटा दिया।

"पूजा"
"मौलिक एवं अप्रकाशित"

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Comment by pooja yadav on December 30, 2014 at 8:13pm
Dhanywaad jitendra ji. .
Pratikriya ke liye saadar aabhaar. .
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 29, 2014 at 1:09pm

बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीया पूजा जी. वैसे आजकल अंधविश्वास कि घटनाएं कम ही देखने को मिल रही है. लघुकथा पर बधाई आपको

Comment by pooja yadav on December 28, 2014 at 8:15pm
Aap sabhi aadarneey pathak jano ka haardik aabhaar. .
Archna ji. .vyakti koi bhi ho adhikanshtah maatribhasha ka hi pryog karta h. . Saadar
Comment by Hari Prakash Dubey on December 28, 2014 at 8:09pm

आदरणीय पूजा जी ,उत्तम  रचना , हार्दिक बधाई आपको ! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 28, 2014 at 6:50pm

इस लघुकथा के माध्यम से आपने अंधविश्वास पर चोट करने की कोशिश की है आपने इसे और बेहतर बनाया जा सकता है


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 28, 2014 at 1:50pm

आदरणीया पूजा जी कथा बहुत अच्छी हुई है आपको हार्दिक बधाई

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