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सूर्यास्त - लघुकथा (मिथिलेश वामनकर)

बॉस के कमरे की अधखुली खिड़की। उसने डूबते सूरज को देखते हुए कहा- “आप मेरे प्रमोशन की बात को हमेशा टाल जाते है.... मेरे हसबेंड के लिए आहूजा ग्रुप में सिफारिश भी नहीं की अब तक... .. उन्होंने तीन महीनों से बातचीत बन्द कर रखी है। हमेशा नाराज रहते है, रोज ड्राइंग रूम में सोते है। पता है, मैं कितनी परेशान हूँ... इस बार पीरियड भी नहीं आया है।”


कहते-कहते वो अचानक मौन हो गई। कमरे में चीखता हुआ सन्नाटा पसर गया था।

क्षितिज पार सूरज तो कब का डूब चुका था।

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(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 30, 2014 at 8:29pm
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर, आपकी उत्साह भरी सराहना से अभिभूत हूँ आपका स्नेह मिलता हैतो रचनाकर्म को बहुत बल मिलता है। आपका हार्दिक आभार। नमन।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 30, 2014 at 8:01pm

मिथिलेश जी, आ0 सौरभ जी की तरह मैं भी यही चाहता हूँ कि आ बागी जी और मेरे अनुजवत आ० सपादक योगराज जी इस कथा पर अपने विचार् देते i पर उनकी अपनी व्यस्तताएं भी है i मैं तो यही कहूँगा - अगर मैं एग्जामिनर होता तो नं 0 दस में दस देता i

नफासत के अलग देता i लियाकत के अलग देता i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 30, 2014 at 6:55pm

आदरणीय सोमेश भाई जी ...लघुकथा के इस प्रथम प्रयास पर आपकी सराहना के लिए बहुत बहुत आभार .... हार्दिक धन्यवाद .... प्रयास जारी रहेगा बस आपका स्नेह बना रहे ...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 30, 2014 at 6:54pm

आदरणीय  जितेन्द्र पस्टारिया जी .... इस पहले प्रयास पर आपकी सराहना उत्साहवर्धक है ... आपका तहे दिल से शुक्रिया 

Comment by somesh kumar on December 30, 2014 at 2:32pm

गजलों से हट इस विधा में आपका प्रस्तुतिकरण प्रशसनीय है ,निश्नदेह उगता सूरज वही है जो किरणों को केवल क्षितिज तक ही ना बांटे ,बल्कि अंतिम छोर तक पहुंचाए ,साहित्य के विविध विधा में सफलतापुर्वक लिखना भी एक सफल लेखक होने की पहचान है ,आप के प्रयास पर बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 29, 2014 at 1:03pm

आजकल सफलता के लिए, सीधे शार्टकट लेने में इंसान नयी-नयी समस्याओं में घिर जाता है. लघुकथा पर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी.

आदरणीय सौरभ जी कि प्रतिक्रिया और आपकी लघुकथा में संशोधन ने लघुकथा के आयाम को बहुत ऊँचा स्तर दे दिया है, यह मार्गदर्शन केवल ओ.बी.ओ. मंच पर ही मिलेगा, जिसमे हमेशा स्नेह व् अपनेपन कि अनुभूति शामिल है


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 28, 2014 at 8:43pm

आदरणीय मिथिलेश भाई, इस प्रस्तुति पर मेरी टिप्पणी से संप्रेषित हो रहे इंगितों को आपने न केवल समझा है, बल्कि उनका अन्वर्थ साझा कर अपनी सकारात्मक सोच का परिचय दिया है. हम सभी इस मंच पर ऐसे ही सीखते हैं, भाईजी.

लघुकथा के इन विन्दुओं पर मैं आदरणीय योगराजभाई और भाई गणेश बाग़ीजी की प्रतिक्रियाओं की भी प्रतीक्षा कर रहा हूँ.
वस्तुतः मैं मूल रूप से पाठक ही हूँ.
शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 28, 2014 at 6:58pm

आदरणीय शिज्जु भाई जी ...बहुत बहुत आभार .... हार्दिक धन्यवाद .... प्रयास जारी रहेगा बस आपका स्नेह बना रहे ...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 28, 2014 at 6:53pm

आदरणीय मिथिलेश जी बहुत बहुत बधाई इस लघुकथा के लिये प्रयासरत रहें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 28, 2014 at 6:48pm

आदरणीया अर्चना जी .... इस पहले प्रयास पर आपकी सराहना उत्साहवर्धक है ... आपका तहे दिल से शुक्रिया 

कृपया ध्यान दे...

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