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गजल-ये नहीं शायरी के पन्नें है!

2122 1222 22

ये मेरी जिन्दगी के पन्ने हैं!
ये नहीं शायरी के पन्ने हैं!!

ये नशेमन है मेरी आहों के!
ये तेरी बेरुखी के पन्ने हैं!!

मुफलिसी बेबसी की ये चींखे!
तीरगी इस गली के पन्नें हैं!!
ंंंंंं
ये तो बच्चों की लाशे है या रब!
ये तेरी खामुशी के पन्ने हैं!!

ना समझ हो अभी क्या समझोगे!
मेरे कागज सभी के पन्ने हैं!!

देखनी हो जिसे दुनिया 'राहुल'!
मुझको पढ़ ले इसी के पन्ने हैं!!

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Dr. Vijai Shanker on December 21, 2014 at 8:54pm
मुफलिसी बेबसी की ये चींखे!
ये मेरी सर जमीं के पन्ने हैं!!
रचना आकर्षक है, बधाई, आदरणीय राहुल डांगी जी, सादर।
Comment by Rahul Dangi Panchal on December 21, 2014 at 7:26pm
आदरणीय सौरभ जी मैं आपके निर्देषो पर अवश्य गौर करुंगा! हौसला अफजाई के लिए बार बार धन्यवाद कबूल करें!

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 21, 2014 at 5:59pm

भाई राहुल डांगीजी, आप बहर को साध कर अपनी बातें कहना सीख रहे हैं. धीरे-धीरे प्रयास करें कि शेरों के मिसरों की संप्रेषणीयता भी दुरुस्त हो. कई बार लगता है कि शेरों के माध्यम से आपने बहुत ऊँची बात कर दी. लेकिन बात बनी नहीं होती या स्पष्ट रूप से संप्रेषित नहीं हो पाती.

फिर, अगर आप ग़ज़ल कहते हैं तो नहीं केलिए ’ना’ शब्द का प्रयोग न किया करें. इसकी जगह ’न’ सही रहता है. वैसे, ऐसी कोई बंदिश पद्य की अन्य विधाओं मे नहीं है.
फिर, नासमझ एक ही शब्द है. अतः इसे ना समझ न लिखा करें.

बहरहाल दाद कुबूल करें

Comment by Rahul Dangi Panchal on December 21, 2014 at 5:47pm
बहुत बहुत धन्यवाद हरी प्रकाश दूबे जी
Comment by Hari Prakash Dubey on December 21, 2014 at 5:29pm

मुझको पढ़ ले इसी के पन्ने हैं...बधाई राहुल जी !

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