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मत लिखना आने की बात

मत लिखना आने की बात

मत लिखना आने की बात

 आने से पहले

 जो ना आए, नियत वक्त पे

 झल्लाएगा मन

 उठेंगे सौ-सौ प्रश्न

 तुम्हारे बारे में

 लपटें उठ जाएंगी

 राख ढके अंगारे में

 अच्छा है बिन बतलाए आओ

 बिना कोई उम्मीद जगाए

 आ जाओ जो ऐसे एक दिन

 दिल होली, दिवाली, ईद मनाए |

  सोमेश कुमार(08/08/2014) (मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by somesh kumar on December 23, 2014 at 12:59am

क्षमा चाहूँगा कि obo पे प्रस्तुत ना हो पाने  के कारण मंच के आदरणीय जनों कि प्रतिक्रिया एवं सुझावों से अवगत नहो सका |मानता हूँ की साहित्य एक साधना है और यह केवल अभ्यास से आएगी ,परंतु ये मन की चंचलता है जो एक विधा पे ठहरती ही नहीं शायद इस कारण विधा-विशेष में वैसी प्रस्तुति देने में असफल होता हूँ जैसी गुरु-गण आशा रखते हैं ,पर अपनी तरफ से पुरा प्रयास रहता है की विधा के मानकों को माँनू और ये प्रयास अनवरत जारी रहेगा |कोशिश में लगा रहूँगा बस इतना विश्वास दिलाता हूँ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 22, 2014 at 9:39pm
आदरणीय सौरभ सर मैं शायद अपनी बात सही तरीके से प्रस्तुत नहीं कर पाया, उसके लिए क्षमा चाहता हूँ। कुछ अप्रासंगिक कह गया हूँ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 22, 2014 at 9:05pm
आदरणीय सौरभ सर आपने सही कहा, अभी मैं अभ्यास के प्रारंभिक दौर में ही हूँ. इस मंच से जुड़ने का कारण ही यह है कि नया सीख सकूं, मैंने अपनी इसी कमज़ोरी को अपनी टिप्पणी में व्यक्त किया है। जिसमें लिखा वहीँ है पर असरदार नहीं है।अब आप लोगो के सानिध्य में ऐसे पूर्वाग्रह टूटेंगे और नया सीख पाउँगा। सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 22, 2014 at 8:32pm

// अच्छी और सुगठित रचनाएँ लिखना, केवल तभी संभव है जब आप कम से कम शब्दों में अपनी बात कहने के लिए वृहद् शब्दकोश के धनी हो. //

यदि कोई गंभीर रचनाकार शब्द-विधा-व्याकरण पर समय न दे सके, आवश्यक दीर्घकालिक अभ्यास न कर सके, फिर उसे अपने रचनाकर्म की परिणति पर गंभीर पाठकों को निमंत्रित नहीं करना चाहिये.
दूसरे, कोई विधा किसी अन्य विधा का स्थानापन्न नहीं होती. ऐसा सोचना या मानना रचनाकर्म के तौर पर प्रारम्भिक अवस्था है.
शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 22, 2014 at 8:15pm

आदरणीय सौरभ सर, बागी सर  अतुकांत रचना पर आप दोनों की विस्तृत टिप्पणी हम नौसिखियों के लिए बहुत लाभकारी होगी. आप लोगो द्वारा सुझायी गयी अच्छी और सुगठित रचनाएँ लिखना, केवल तभी संभव है जब आप कम से कम शब्दों में अपनी बात कहने के लिए वृहद् शब्दकोश के धनी हो. शायद यही कारण है कि मैं हमेशा बहर या छंद का सहारा लेता हूँ जैसे अगर मैं इसे लिखता तो बहुत से नए शब्द जोड़ लेता यथा -

लिखों मत बात आने की

न आये तुम समय पे तो

उठेगी खीझ इस मन में|

 

तिरे इक नाम की चर्चा, सवालों में जहां होगा,

लपट उठ जागी उस राख में शोले सजे होंगे

 

बिना बतला आओ तुम, नहीं उम्मीद जागेगी.

कि आओ एक दिन ऐसे

मनाये दिल दिवाली ईद होली और खो जाए. 

सादर 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 22, 2014 at 5:54pm

अतुकांत कविता को संवारने का तरीका.... बहुत ही अच्छा लगा ...यह मंच बहुत कुछ सिखाता है.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 22, 2014 at 4:14pm

सोमेश जी

दो सशक्त हस्ताक्षर  आपकी रचना पर आये i आपका मार्गदर्शन किया  जानते है क्यों - मेरी तरह उन्हें भी आपमें  संभावना दिखती है i इसे बनाए रखना आपका कर्तव्य है i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 21, 2014 at 4:55pm

आदरणीय सोमेश भाई , अतुकांत रचना का बहुत सुन्दर प्रयास हुआ है , बात भी सुन्दर कही है ! बधाई स्वीकार करें ।आ. बागी जी ने और आ.सौरभ भाई ने विस्तार से बातें समझाई है , खयाल कीजियेगा ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 21, 2014 at 4:53pm

धन्योस्मि .. :-))


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 21, 2014 at 4:48pm

आपके कहे में मेरी पूर्ण सहमति है आदरणीय सौरभ भईया, आप द्वारा सुझायी गयी रचना अच्छी और सुगठित हो कर निकली है .

कृपया ध्यान दे...

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