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सूर्य तो बस सुधा कूप है/ नवगीत (मिथिलेश वामनकर)

प्रेम की गुनगुनी धूप है

सूर्य तो बस सुधा कूप है

 

हंस रहा रश्मियाँ भेजकर

तीर्थ के दीप सा बल रहा

कष्ट में पुष्प सा खिल गया

अनगिनत विश्व का छंद है

कांति का शांति का रूप है

सूर्य तो बस सुधा कूप है

 

ब्रह्म के कण विचरते हुए

बल तेरा मिल गया हर दिशा

शून्य में रूप तू इष्ट का

अस्त पर व्यस्त तू फिर कहीं

कर्म का धर्म का यूप है

सूर्य तो बस सुधा कूप है

 

सृष्टि के पुत्र का पालना

तप्त भी तो मनुज के लिए

सिंदूरी सिंदूरी थपकियाँ

कोपलें, गर्भ की सर्जना

मन प्रजा में छिपा भूप है

सूर्य तो बस सुधा कूप है

(मौलिक व अप्रकाशित)

मिथिलेश वामनकर 

Views: 883

Comment

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Comment by Hari Prakash Dubey on December 20, 2014 at 6:43pm

सूर्य तो बस सुधा कूप है....बधाई मिथिलेश जी,सुन्दर रचना !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 20, 2014 at 12:53am

नवगीत के पैमाने पर यह रचना कहाँ तक सफल है, ये गुनिजन ही बता सकते है. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 19, 2014 at 3:13pm
परम आदरणीय गुमनाम जी इस प्रयास की सराहना के लिए हृदय से धन्यवाद । आभार। सादर।
Comment by gumnaam pithoragarhi on December 19, 2014 at 2:58pm

सुन्दर रचना के लिए बधाई सर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 19, 2014 at 12:44pm

आदरणीय श्याम नरैन वर्मा जी नए प्रयास पर आपकी सराहना उत्साहवर्धन करने वाली है, हार्दिक धन्यवाद, बहुत बहुत आभार 

Comment by Shyam Narain Verma on December 19, 2014 at 12:36pm

" सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर............. "


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 19, 2014 at 12:14pm

आदरणीय  डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव  सर   आपको रचना पसंद आई आभार धन्यवाद. नवगीत विधा पर यह पहला प्रयास है. आदरणीय सौरभ पांडे सर के आलेख और नवगीत पढने के बाद एक प्रेरित होकर प्रयास  किया है.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 19, 2014 at 12:11pm

आदरणीय नीरज मिश्रा जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद उत्साह वर्धन के लिए ...आभार 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 19, 2014 at 10:37am

वामनकर जी, आपकी लेखनी  से निकली अद्भुत रचना  i  सादर i

Comment by Neeraj Nishchal on December 19, 2014 at 9:25am
मित्र मिथिलेश जी एक सजीव सुंदर और सहज वर्णन आपकी इस रचना मेँ हैँ इस सारगर्भित रचना के लिये आपको बहुत बहुत बधाई । निश्चित ही सूर्य सुधा कूप है ।

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