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"सर, मैं मुंबई वाले प्राॅजेक्ट पर आपके साथ नहीं चल पाऊँगी।"- कहते हुए निशा ने फोन रख दिया।
"क्या हुआ निशा?"- अपनी बहन को परेशान देखकर नीरज ने पूछा।
"भैया हमारी कम्पनी एक नया प्राॅजेक्ट शुरू कर रही है। बाॅस मुझे मुंबई साथ में चलने की जिद्द कर रहे हैं और मैं वहाँ अकेले उनके साथ जाना नहीं चाहती। बाॅस कह रहे हैं अगर साथ नहीं चली तो समझो जाॅब गई। भैया फिर घर का खर्चा कैसे चलेगा?"
पढाई पूरी करने के बाद बेरोजगार घुम रहे नीरज का सपना बहुत बड़ा आदमी बनने का था लेकिन आज अपनी बहन को दुविधा में देखकर उससे आँखें नहीं मिला पा रहा था।
"निशा तुम्हें किसी के साथ कहीं जाने की जरूरत नहीं है अगर जाॅब जाती है तो जाए। तुम कोई और जाॅब ढूंढ लेना।"
अगले दिन नीरज एक ठेला किराये पर ले आया और उसमें चने-नमकीन वगैरह भरकर बेचने शुरू कर दिये। आज उसे अपना सपना बहन की इज्जत के सामने बहुत बौना नजर आ रहा था।

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by rajesh kumari on December 12, 2014 at 8:37pm

अच्छी लघु कथा है जिसको इज्जत और खुद्दारी का ख्याल है वही सच्चा दोस्त वही अपना है ..बहुत बहुत बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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