For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वक़्ते-पैदाइश पे यूं

मेरा कोई मज़हब नहीं था
गर था मैं,

फ़क़त इंसान था, इक रौशनी था

बनाया मैं गया मज़हब का दीवाना
कि ज़ुल्मत से भरा इंसानियत से हो के बेगाना
मुझे फिर फिर जनाया क्यूँ
कि मुझको क्यूँ बनाया यूं

पहनकर इक जनेऊ मैं बिरहमन हो गया यारो
हुआ खतना, पढ़ा कलमा, मुसलमिन हो गया यारों
कहा सबने कि मज़हब लिक्ख
दिया किरपान बन गया सिक्ख

कि बस ऐसे धरम की खाल को
मज़हब के कच्चे माल को
यूं ठोककर और पीटकर
खूं से सजाने वाला था
फ़ित्ना सिखाने वाला था
इक कारखाना कारगर
यारो कि मेरा अपना घर.…… अपना घर

-------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित) - मिथिलेश वामनकर
-------------------------------------------------------

Views: 820

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 4, 2014 at 9:38pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी आपका इस रचना पर उपस्थित होना ही मेरे लिए बड़ा प्रोत्साहन है। धन्यवाद। आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 4, 2014 at 9:21pm

पहनकर इक जनेऊ मैं बिरहमन हो गया यारो 
हुआ खतना, पढ़ा कलमा, मुसलमिन हो गया यारों 
कहा सबने कि मज़हब लिक्ख 
दिया किरपान बन गया सिक्ख-------बहुत खूब लिखा है आपने ये धर्म ये मजहब हम इंसानों की ही देन हैं भगवान ने तो सिर्फ इंसान बनाया है .बहुत शानदार प्रस्तुति 

हार्दिक बधाई मिथिलेश जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 4, 2014 at 8:36pm
आदरणीय विजय शंकर जी धन्यवाद । बेहतरीन और जीवन का सत्य दर्शाती आपकी पंक्तियाँ।
Comment by Dr. Vijai Shanker on December 4, 2014 at 10:30am
आदरणीय मिथलेश वामनकर जी , आपकी प्रस्तुत कविता अच्छी लगी , मेरी ओर से ये पंक्तियाँ समर्पित हैं आपकी इस रचना को -
जब पैदा हुआ था
वह धरती का एक इंसान था ,
जब गया यहां से
तो धरती का एक इंसान था.
सारे भेद भाव उसे
यहीं मिले थे , यहीं वो
छोड़ गया उनकों , उनके लिए
जिन्होंनें वे बनाये थे .
मेरी ओर से आपको बधाई।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 3, 2014 at 9:52pm
आदरणीय हरिप्रकाश दुबे जी बहुत बहुत धन्यवाद

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 3, 2014 at 9:51pm
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण जी रचना पर टिप्पणी एवम् अशिर्वाद के लिए ह्रदय से धन्यवाद

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 3, 2014 at 9:49pm
इस प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 3, 2014 at 9:47pm
बहुत बहुत धन्यवाद। आभार आदरणीय श्याम वर्मा जी
Comment by Hari Prakash Dubey on December 3, 2014 at 7:35pm

सुन्दर रचना मिथिलेश वामनकर जी ,बधाई आपको !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 3, 2014 at 7:00pm

vaamankar jee

बहुत अर्थ पूर्ण लिखा आपने i सादर बधाई i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"2122 1212 22 बेवफ़ाई ये मसअला क्या है रोज़ होता यही नया क्या है हादसे होते ज़िन्दगी गुज़री आदमी…"
6 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"धरा पर का फ़ासला? वाक्य स्पष्ट नहीं हुआ "
18 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय Richa Yadav जी आदाब। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार करें। हर तरफ शोर है मुक़दमे…"
48 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"एक शेर छूट गया इसे भी देखिएगा- मिट गयी जब ये दूरियाँ दिल कीतब धरा पर का फासला क्या है।९।"
49 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक…"
54 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी आदाब।  ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"2122 1212 22 बात करते नहीं हुआ क्या है हमसे बोलो हुई ख़ता क्या है 1 मूसलाधार आज बारिश है बादलों से…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"खुद को चाहा तो जग बुरा क्या है ये बुरा है  तो  फिर  भला क्या है।१। * इस सियासत को…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
4 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल~2122 1212 22/112 इस तकल्लुफ़ में अब रखा क्या है हाल-ए-दिल कह दे सोचता क्या है ये झिझक कैसी ये…"
9 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"स्वागतम"
9 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service