For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दंभ से बचो , मेरे दोस्त !!

आसमान को
कौन छुना नहीं चाहता , मेरे दोस्त !!
तारे तोड़ने की ईच्छा
किसे नहीं होती ॥

परन्तु , आसमान छुने पर
दंभ मत भरना , मेरे दोस्त !!

हिमालय भी दंभ भरता था
अपनी ऊँचाई का .....
न जाने कितनी बार
तोड़ा गया उसका दंभ ॥

पहाड़ के शिखरों पर रखे
पथ्थरो की बिसात ही क्या
किसी भी दिन
कुचल दिए जायेगे
सडकों के नीचे
बड़े -बड़े मशीनों द्वारा ॥

और अंत में ....
यह भी याद रखना , मेरे दोस्त
दरखतो की उपरी टहनियां
दंभ भरती थी
मगर जब , आंधी चली
उपरी टहनियां ही
टूट कर सबसे पहले ज़मीन पर आयी ॥

Views: 352

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 8, 2010 at 10:31am
Bahut badhiya dhang se is sunder kavita ke madhyam se apna sandesh diya hai apne, meri badhayi sweekar karein.
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on June 7, 2010 at 6:50pm
हिमालय भी दंभ भरता था
अपनी ऊँचाई का .....
न जाने कितनी बार
तोड़ा गया उसका दंभ ॥

bahut hi khubsurat aur gyanprad rachna hai baban jee.....aage bhi aisi hi rachna ka intezaar rahega
Comment by Admin on June 7, 2010 at 12:38pm
पहाड़ के शिखरों पर रखे
पथ्थरो की बिसात ही क्या
किसी भी दिन
कुचल दिए जायेगे
सडकों के नीचे
बड़े -बड़े मशीनों द्वारा ,

खुबसूरत कविता, शिक्षाप्रद रचना, ससक्त अभिव्यक्ति, विचारो मे तारतम्यता, सब कुछ तो है इस रचना मे, बहुत ही सुंदर , धन्यबाद,

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 6, 2010 at 10:48pm
यह भी याद रखना , मेरे दोस्त
दरखतो की उपरी टहनियां
दंभ भरती थी
मगर जब , आंधी चली
उपरी टहनियां ही
टूट कर सबसे पहले ज़मीन पर आयी

वाह बबन भाई वाह, क्या आपने लिखा है, बिल्कुल सही कहा है आपने, घमंड भगवान का भोजन होता है, बडो बडो का घमंड टूटने मे देर ही लगती फिर हमारी आपकी बिसात ही क्या है, बहुत ही बढ़िया लिखा है, बहुत बहुत धन्यबाद इस पोस्ट के लिये ,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
1 hour ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
10 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
10 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service