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ग़ज़ल ..रूबरू हम हो गए

खुद ज़रा गर्दन झुकाकर रूबरू हम हो गए.

बंद करली आँख अपनी गुफ़्तगू में खो गए.

वस्ल की जो थी तमन्ना किस क़दर हावी हुयी.

ख्व़ाब में आयेंगे वो इस जुस्तजू में सो गए.

कौन जाने थी नज़र या वो बला जादूगरी.

देख मुझको बीज दिल में इश्क का वे बो गए.

वायदा उनका मकम्मल आज आने को कहा.

आ रहे वादे मुताविक देखते ही वो गए.

वक़्त लेता करवटें जो आज है कल है नहीं.

चार दिन की चांदनी को अब अँधेरे लो गए.

पोंछने आया नहीं वो अश्क आखों से बहे.

आएगा सैलाब कोई इसलिए हम रो गए.

जिंदगानी थी कठिन जो कट गयी तेरे बिना.

जीस्त का ये बोझ सारा हम अकेले ढो गए.

थी बहुत सारी शिकायत दोस्त ऐ तुझसे मुझे.

दाग दिल के थे अनेकों मुस्कुरा कर धो गए.

**हरिवल्लभ शर्मा दि. 16.09.2014

 

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Comment by harivallabh sharma on September 17, 2014 at 10:50am

जनाब Khursheed khairadi साहब आपने ग़ज़ल पर स्नेह दिया आपका हार्दिक आभार शुक्रिया.

Comment by khursheed khairadi on September 17, 2014 at 9:22am

वस्ल की जो थी तमन्ना किस क़दर हावी हुयी.

ख्व़ाब में आयेंगे वो इस जुस्तजू में सो गए.

आदरणीय हरिवल्लभ शरमा जी ,लाज़वाब ग़ज़ल हुई है ,हार्दिक बधाई ,ढेरों दाद .....वाह 

Comment by harivallabh sharma on September 17, 2014 at 1:08am

बहुत आभार आदरणीय Dr Vijai Shanker साहब आपने ग़ज़ल पर सार्थक प्रतिक्रिया देकर हौसला बढाया ..

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 17, 2014 at 12:19am
अच्छी ग़ज़ल बनी , आदरणीय हरी बल्ल्भ शर्मा जी, बधाई .
Comment by harivallabh sharma on September 16, 2014 at 4:54pm

आदरणीय Sulabh Agnihotri जी ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया देकर उत्साहित किया ..आपका हार्दिक आभार.

Comment by Sulabh Agnihotri on September 16, 2014 at 3:30pm

bahut sunder

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