For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चलो मयकदे मेँ जमाने मेँ क्या हैँ ।
अगर लुत्फ है तो उठाने मेँ क्या है ।

न पाया जमाने मेँ कुछ भी रहकर ,
अब मयकदा आजमाने मेँ क्या है ।

भर जायेगी जब पैमानोँ मेँ मय ,
फिर उसको पीने पिलाने मेँ क्या है ।

खुदा का तसव्वुर जब हर जगह है ,
फिर सर यहाँ भी झुकाने मेँ क्या है ।

जब राज दिल के सब खुल गये होँ ,
परदा नजर का गिराने मे क्या है ।

न इन्सान समझे जब दिल की कीमत ,
दिल मयकशी से लगाने मेँ क्या है ।

सिवा तेरे तू ही बता मेरे दिलबर ,
इस जिन्दगी के फसाने मेँ क्या है ।

अगर चाहिये जिन्दगी को बहाना ,
कि इस खूबसूरत बहाने मेँ क्या है ।

मौलिक व अप्रकाशित
नीरज मिश्रा

Views: 810

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neeraj Nishchal on September 17, 2014 at 12:20pm

मैं खुद से कभी ये सिफारिश करूंगा |

तुम्हें भूलने की गुजारिश करूंगा | 

आदरणीय भंडारी जी एक ग़ज़लकार का ये मतला जब मैंने देखा  तो पहली पंक्ति मे शुरुवात के शब्द मै को पर मैंने सवाल किया तो उन्होंने कहा मै 1 भर का वजन दो और ग़ज़ल  इसकी इजाजत देता है तो आप अब मेरी शंका को दूर करें | 

Comment by Neeraj Nishchal on September 17, 2014 at 12:12pm

आदरणीय नरेन्द्र जी आपका बहुत बहुत आभार

Comment by harivallabh sharma on September 17, 2014 at 11:26am

भाव सुन्दर हैं..तक्तीअ पर मिसरे और कसे होते तो आनद आ जाता..गुनिजन की राय पर अमल करें बहुत सुन्दर ग़ज़ल होगी.

Comment by khursheed khairadi on September 17, 2014 at 10:17am

आदरणीय नीरज भाई अच्छे भाव हैं ,अभिनन्दन |आदरणीय गिरिराज जी की इस्लाह अनुसार यदि आप मिसरों को यगण की चार आवृतियों या फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन पर बांधे तो लय का चमत्कार आप स्वयं अनुभव करेंगे |सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 15, 2014 at 6:57pm

नीरज भाई

तक्तीअ तो गुनीजन जाने i पर मुझे आपकी गजल  के भाव बहुत अच्छे लगे .

Comment by gumnaam pithoragarhi on September 15, 2014 at 6:33pm

न पाया जमाने मेँ कुछ भी रहकर ,
अब मयकदा आजमाने मेँ क्या है ।

waah achchha hai......


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 15, 2014 at 4:42pm

आदरणीय नीरज भाई , बहुत खूब सूरत ग़ज़ल हुई है , आपको बधाइयाँ |

कुछ मिसरे बहर से भटके हुए लगा रहे हैं , अगर आपने ग़ज़ल --१२२   १२२   १२२  १२२ में कही है तो , एक बार सभी मिसरों की तक्तीअ करा के देख लीजिये |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service