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“भाभी, अगर कल तक मेरी राखी की पोस्ट आप तक नहीं पँहुची तो परसों मैं आपके यहाँ आ रही हूँ  भैया से कह देना ” कह कर रीना ने फोन रख दिया|

अगले दिन भाभी ने सुबह ११ बजे ही फोन करके कहा, "रीना राखी पहुँच गई है ”

"पर भाभी मैंने तो इस बार राखी पोस्ट ही नहीं की थी !!! "


(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment by rajesh kumari on August 19, 2014 at 3:18pm

अन्नापूर्णा बाजपेयी जी ,आपको ये लघु कथा पसंद आई आपका हार्दिक आभार. 

Comment by annapurna bajpai on August 14, 2014 at 11:39pm

बहुत सुंदर व्यंग्यात्मक लघु कथा , ज़्यादातर घरों मे ऐसा ही होता है । आपको बहुत बहुत बधाई आ0 राजेश दीदी । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 13, 2014 at 3:21pm

मीना पाठक जी ,आपको लघु कथा पसंद आई दिल से आभार आपका |

Comment by Meena Pathak on August 13, 2014 at 3:09pm

हर  दूसरे घर की कहानी ...बहुत सुन्दर शब्दकसी ,, बहुत बहुत बधाई आप को 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 12, 2014 at 8:26pm

छाया शुक्ला जी ,आपने सही कहा हर तीसरे कदम पर ऐसा कुछ देखने सुनने को मिल जाएगा रिश्तों के मायने ही बदल रहे हैं,आपको ये लघु कथा पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ ,दिल से आभार आपका. 

Comment by Chhaya Shukla on August 12, 2014 at 8:23pm

ये लघु कथा कई घरों की सच्चाई लग रही है राजेश कुमारी जी सत्य उद्घाटित कथा के लिए बधाई ; सादर नमन ! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 12, 2014 at 8:17pm

शुभ्रांशु पाण्डेय जी,आपकी बातों से पूर्णतः सहमत हूँ कितनी रफ़्तार से ज़माना बदल रहा है रिश्ते पीछे छूटते जा रहे हैं ,आपको लघु कथा पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभारी हूँ | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 12, 2014 at 8:15pm

आ० रवि प्रभाकर जी,आप जैसे संवेदन शील कथा कार से सकारात्मक प्रतिक्रिया पाकर ये लघु कथा सार्थक हो गई है अपने  लेखन के प्रति सराहना पाकर मेरी कलम ऊर्जस्वी हुई है दिल से आभारी हूँ . 

Comment by Shubhranshu Pandey on August 12, 2014 at 8:10pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, 

आभासी दुनिया में जीते जीते हम इतने आत्मकेन्द्रित, आत्म प्रेमी  होते गये कि भौतिक सम्बन्धों से हम पीछा छुडा़ना चाहते हैं. उन्हे भी अब एक फ़ोन काल की तरह होल्ड पे डालना चाहते हैं.

सुन्दर कथा. भाभी ने पीछा छुडाने के लिये शायद यही सोचा था.

सादर.

 

Comment by Ravi Prabhakar on August 12, 2014 at 6:54pm

आदरणीय राजेश कुमारी जी,
आपकी प्रेषित लघुकथा बहुत सुन्दर लगी। दैनिक जीवन में से एक साधारण
सी लगने वाली घटना का आपने अत्यंत सजीव चित्रण किया है।
लघुकथा का प्रभाव उसके आकार से विपरीत अनुपात रखता है।
सो, इस प्रभाव की तीक्ष्णता के लिए इसका आकार लघु होना अत्यंत ही आवश्यक है।
संभवतः यह आपकी सर्वश्रेष्ठ लघुकथा है। ग़ज़ल तो माशा अल्लाह आप बहुत ही खूबसूरत
लिखती हैं। बहुत ही प्रभावशाली प्रस्तुति एवं सुन्दर संदेश लिए इस लघुकथा के लिए आपको हृदय से शुभकामनाएं।

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